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नक्षत्र -2
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पंचक नक्षत्र
१- धनिष्ठा
२- शतभिषा
३- रेवती
४-पूर्वाभाद्रपद
५-उत्तराभाद्रपद
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दग्ध संज्ञक नक्षत्र :-
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भरणी नक्षत्र हो एवं रविवार हो
चित्रा नक्षत्र हो एवं सोमवार हो
उत्तरषाढा़ नक्षत्र हो एवं मंगलवार हो
धनिष्ठा नक्षत्र हो एवं बुधवार हो
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो एवं गुरुवार हो
ज्येष्ठा नक्षत्र हो एवं शुक्रवार हो
रेवती नक्षत्र हो एवं शनिवार हो
तब दग्ध संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं इस समय शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
मूल नक्षत्र :–
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१-ज्येष्ठा
२-अश्लेषा
३-रेवती
४- मघा
५-मूल
६-आश्विन
ये सभी मूल नक्षत्र हैं जो अच्छे नहीं होते बल्कि हानिकारक होते हैं। गण्डमूल नक्षत्र तो दारुण दुख भी देते हैं।
गण्डमूल नक्षत्र :–
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मूला-वासवयोर्मघा-भुजगयोः पौष्णाश्वयोः सन्धिजं
गण्डांतं प्रहरप्रमाणमधिकानिष्टप्रदं प्राणिनाम्
ज्येष्ठादानवतारसंधि-घटिका चाभुक्तसंज्ञा भवेत्
तन्नाडीप्रभवाअंगना सुत-पशु-प्रेष्याकुल-ध्वंसकाः ।।
मूल-ज्येष्ठा की, मघा-आश्लेषा की, रेवती-अश्विनी की संधि मे साढ़े सात घड़ी तक गण्डांतं होता है।
यह प्राणियों के लिए अधिक अनिष्टकर होता है।
ज्येष्ठा, मूल की संधि की एक घड़ी अभुक्त-संज्ञक है, इसमें उत्पन्न पुत्र,पशु और नौकर कुल के नाशक होते हैं।
अभुक्त-मूलजं पुत्रं पुत्री मपि परित्यजेत्
अथवा अब्दाष्टकं तातसतन्मुख नावलोकयेत्।
अभुक्त मूल मे उत्पन्न लड़के लड़की को त्याग दे अथवा आठ वर्ष तक पिता उससे दूर रहे फिर शान्ति करके बालक का मुख देखे।
वैसे गण्डांतं और मूल नक्षत्र में उत्पन्न बालक के मुख को पिता सत्ताइस दिन तक न देखें। पश्चात शान्ति करके देखना कल्याणप्रद होता है।
अभुक्त मूल मे जन्मा बालक जीवे तो अपने वंश का कर्ता, श्रीमान और बहुत नौकरौ का मालिक होता है।
मूल नक्षत्र में उत्पन्न बालक पिता का, दूसरे चरण मेंं उत्पन्न माता का, तीसरे चरण मे उत्पन्न धन-धान्य का नाशक होता है, और चौथ चरण मे उत्पन्न बालक धन का लाभ देता है।
गृह,जमीन, स्वर्ण, धन,अन्न, घर की वस्तुएं ,पशु,वस्त्र को बुद्धिमानों ने “ धन” की संज्ञा कही है।