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एक दिव्य उपचार पद्धति ” रेकी “
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इस चिकित्सा पद्धति में अनिवार्य नियम है कि क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या, और अहं का सर्वथा त्याग करे।
जीव-जन्तु, प्राणी तथा वनस्पति आदि सबके प्रति प्यार भरा व्यवहार।
और अन्त मे प्रकृति और प्राकृतिक नियमों से प्रसन्नता बटोरना और औरों में बांटना भी।
पहली शर्त मे त्याग करना है ,इसका मतलब है कि ये आप ( द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार ) रखते ही है, तो चाहे यदि आप छोड़ सकते है।
दूसरी शर्त मे प्यार भरा व्यवहार करना है, आप भी कोशिश कर सकते है।
तीसरी शर्त मे कुछ काम आपको करना है, जिसके लिए ज्ञान की आवश्यकता होगी, बुद्धि की जरूरत पड़ सकती है। तो क्या ज्ञान अलग, और बुद्धि अलग है।
हा अलग अलग है, जैसे आप सभी वृक्षों को वनस्पति समझते है जबकि वनस्पति वह है ,जो बिना मौर आये ही फलते है, जैसे―गूलर,बड़, पीपल आदि।
जबकि वृक्षों में― लता, वनस्पति,, वीद्रध, द्रुम, त्वक्सार
आते हैं। ये सब क्या हैं इन्हें अन्य दिनो मे परिभाषित कर लेगें।
तीसरी शर्त है प्रकृति और प्राकृतिक नियमों से कुछ उर्जा और प्रसन्नता बटोरना। यहां आपको प्रकृति जानना पड़ेगा।
प्रकृति जो त्रिगुणात्मक, अव्यक्त, नित्य, और कार्य कारण रुप है, तथा स्वयं निर्विशेष होकर भी सम्पूर्ण विशेष धर्मों का आश्रय है उसको समझना पड़ेगा।
प्रकृति अष्टधा है।प्रकृति को षडविधत्व प्राप्त है।जैसे
१-स्वभाव:- काँटों को तीक्ष्णता, पशुओं को चित्रविचित्र,गन्ने मे मिठास, मिर्ची मे तीखापन, यह सब धर्म स्वभाव से ही है।
२- ईश्वर:-अज्ञानी प्राणी अपने आत्मा के सब सुख दुःख के दूर करने मे असमर्थ है, ईश्वर को प्रेरित स्वर्ग और नरक को जाता है।
३-काल :- विश्व के उत्पत्ति पालन और नाश का हेतु तथा सूर्य आदि ग्रह का जिसका अनुमान होता है काल रुपी ईश्वर है।
४- यदृच्छा :- जो जिससे होता है उसी मे उसका निमित्त होता है जैसे तृण रुप अरणि से अग्नि उत्पन्न होकर उस अरणी को जलाता है।
५-नियती:- पूर्व जन्मोंपार्जीत धर्म अधर्म ही सर्व जगत का कारण है।
६-परिणाम :- महद तत्व, अहंकादि रुप करके परिणाम पाते हैं इसी कारण सबके कारण रुप हैं।
अंत मे प्राकृतिक नियम की जानकारी आपको होनी चाहिये। प्राकृतिक नियम जो शांतिपूर्वक ब्रह्माण्ड को बिना किसी समस्या के प्रशासित करता है।जो परमात्मा की सरकार है वह प्राकृतिक नियम से ब्रह्माण्ड की सरकार जो १००अरब आकाश गंगाओ की गतिविधियों का संचालन करती हैं, प्रत्येक मे अरबों सूर्य हैं, जो कि सही क्रम के साथ और समय की पूरी अवधि के दौरान समस्या बिना है। क्या आप भी समस्या रहित हैं।
इतना आप के पास है तो अब आप ,या आपका हाथ स्पर्श चिकित्सा कर सकता है।
डाक्टर मिकाओ यूसुई ने महात्मा बुद्ध के जीवन से प्रेरित होकर जापान के किरोयामा पर्वत जाकर घोर तपस्या के बाद इस रेकी के लिए ज्ञान, शक्ति, साधना प्राप्त की।रेकी मे रे सार्वभौमिक शक्ति है जो आध्यात्मिक शक्ति से पैदा होने वाली जीवन उर्जा है,
“की” का अर्थ है प्राण।
रेकी के उर्जा मार्ग शरीर के वे चक्र स्पंदन केंद्र है-जिन्हें जाग्रत करके शक्ति को रोगी के शरीर मे प्रवेश करने लगती है।
जिस वयक्ति के शरीर पर हथेलियां रखी जाती है, वह अपनी ग्रहण शक्ति के अनुसार ही प्राण उर्जा प्राप्त करता है। सरीर के सभी 24 अंगों पर कम से कम 3 मिनट तक हथेलियों को रखना आवश्यक है, फिर जिस अंग मे दर्द है वहां 20-30 मिनट उपचार किया जाता है। शरीर के सातो चक्रों पर उर्जा को जाग्रत कर स्पंदित किया जाता है, रेकी मे साधारणतया तीन दिन परन्तु पुरानी बिमारी को 21 दिन ठीक किया जाता है।
अव्यक्त शक्ति को हासिल करना फिर परोपकार मे बाटना पड़ता है।
लगातार…..
Excellent knowledge
Thanks