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“ग्रहों की स्थिति विशेष और नदी विशेष पर लगने वाले कुंभ”
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ज्योतिष के इस भाग मे जानिऐ कि ग्रहों की एक विशेष स्थिति कैसे करोड़ों करोड़ लोगों को एक जगह एकत्र कर देती है।
जगह विशेष पर इस दिन जीवनदायिनी शक्तियों, रश्मियों व तत्वों का प्रसरण आकाश मार्ग से वहां की भूमि पर सर्वाधिक होता है।
इन रश्मियों को ग्रहण करने साधु,संत,महन्त और सामान्य जन तो एकत्र होते ही है, देवतागण भी वहां पधारते हैं।
ऐसा क्या होता है जब गुरु, सूर्य, और चंद्रमा विशेष स्थिति मे होते हैं। तो ऐसा कुम्भ पर्व पर होता है। कुम्भ से भारत का बच्चा बच्चा परिचित है, वेद पुराणों में इसकी महिमा गायी गई है।
पूर्णः कुम्भोअ्धिकाल आहिस्तस्तं वैपश्यामो बहुधा नु सतः।
स इमा विश्वा भुवनानि प्रत्यंग कालं तमाहुः परमे व्योमन्।। (अथर्ववेद)
यहां लम्बी कहानी न लिखकर इसके वैज्ञानिक पक्ष पर फोकस करते हैं। कहानी मे अमृत के लिए जो देवासुर संग्राम है ,वास्तव मे वह पार्टिकल्स और एंटी पार्टिकल्स या मैटर और एंटीमैटर का परस्पर संघर्ष है।
प्राणी लोक में सुख,समृद्धि तभी व्याप्त रहती है जब जीवन वर्द्धक तत्वों की (मैटर की) अधिकता होती है। अगर इसके विपरीत हुआ तो अनाचार, अत्याचार और प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न होने लगती हैं। इसे अमृत को लेकर देवताओं और राक्षसों का संग्राम कह सकते हैं।
विज्ञान की भाषा मे आक्सीजन तत्व( देवता)जीवन वर्द्धक और कार्बनडाईऑक्साइड ( राक्षस ) जीवन संहारक कहे जाते हैं। हमारी पृथ्वी मंडल सात स्तरों मे विभाजित है जो ग्रहों की, नक्षत्रों की गति से तथा रश्मियों से नित्य प्रभावित होती हैं।
कभी जीवन रक्षक तत्वों की प्रधानता होती है और कभी जीवन संहारक तत्वों की ।ऐसा कब होता है इसका निर्णय ज्योतिष शास्त्र के आधार पर होता है।
गुरु ग्रह जीवनदायिनी शक्ति का अतुल्य भंडार है।
गुरु ग्रह मे आक्सीजन का बाहुल्य है, इसलिये ये देवता है, जबकि शनि मे जीवन संहारक तत्व है। जब गुरू शनि की राशि में प्रवेश करते है तो हानिकारक तत्वों के प्रसारण मे अवरोध उत्पन्न करते हैं, अतः ऐसे समय जीवन वर्द्धक तत्वों को एक विशेष क्षेत्र में प्रभाव छोड़ते हैं तो उस स्थान पर स्थित नदी अमृत स्वरूप हो जाती है, अतः मानव उस स्थान पर पहुंच कर उन पवित्र पावन जीवनद शक्ति और तत्वों को ग्रहण करे और अपनी आयुष्य की वृद्धि करें।
१-जब गुरु शनि की राशि कुंभ मे और सूर्य, चन्द्रमा मंगल की राशि मेष मे तो हरिद्वार में कुंभ।
२-जब गुरू दैत्य के गुरु शुक्र की राशि वृष मे और सूर्य, चन्द्रमा शनि की राशि मकर मे तब त्रिवेणी संगम प्रयाग में कुंभ भरता है।
३-जब गुरु मंगल की राशि वृश्चिक मे और सूर्य ,चन्द्रमा कर्क राशि में तब नासिक मे गोदावरी नदी में कुंभ।
४- जब गुरु सिंह राशि में, तथा सूर्य, मेष राशि में एवं चन्द्रमा तुला राशि में तब महाकाल की पवित्र नगरी उज्जैन में कुंभ आयोजन होता है।
चारों स्थान मे कुंभ का निर्णय गुरु ग्रह के आधार पर ही होता है। गुरु पाप ग्रहों की राशि में जाकर जीवन संहारक तत्वों का प्रसरण रोकते है, साही स्नान के लिए सूर्य और चन्द्र एक राशि में हो।
प्रत्येक 12 वर्ष में एक स्थान पर कुम्भ का आयोजन होता है। बृहस्पति भी 12 वर्ष में राशि चक्र का भ्रमण पूर्ण कर लेते हैं।
अब कहानी के रूप में जान लेते हैं, जब अमृत कलश समुद्र मंथन से प्राप्त हुआ तो देवताओं और दैत्यों मे इसे प्राप्त करने की होड़ लग गई, देवता इस कुंभ को लेकर सभी लोंको मे घूमते रहे और असुर भी पीछा करते रहे। भागते भागते जब थक गये तो कुछ कुछ समय के लिए पृथ्वी पर चार बार अलग अलग स्थान पर रखा था। दिव्य 12 दिनों तक पृथ्वी पर चक्कर लगाते रहे।ये 12 दिव्य दिन पृथ्वी पर 12 वर्षो के बराबर होते हैं।कुंभ को जिन 12 स्थानों पर रखा था वे स्थान हरिद्वार, प्रयाग, नासिक,और उज्जैन थे।
कुंभ को पृथ्वी पर जब रखा गया सूर्य, बृहस्पति और चन्द्रमा जिस स्थिति में थे,उसी स्थिति में पुनः आने पर ही कुंभ का निर्णय होता है।
पृथ्वी की तरह ही 4स्थान देवलोक मेंऔर 4 स्थान पाताल लोक में हैं, जहां कुंभ का आयोजन होता है।जब इन लोकों मे कुंभ का आयोजन होता है तब यहां पृथ्वी पर अर्धकुंभ का आयोजन होता है।जैसा अभी 14जनवरी से 4मार्च 2019 तक तीर्थ राज प्रयाग में अर्ध कुंभ चल रहा है।