September 3, 2021

Aja Ekadashi | Ekadashi September Vrat Katha

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अथ भाद्रपद कृष्ण एकादशी कथा
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★★★★अजिता एकादशी★★★★
##### ०३ सितम्बर २०२१ #####
[दिनांक २/९/२०२१ को, सूर्योदय ०५:५९ AM, एकादशी शुरु ०६:२४ AM अतः उदयकालीन एकादशी
०३/०९/२०२१ को ]
युधिष्ठिर जी बोले कि, हे भगवन्! भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? मैं सुनना चाहता हूँ, इसका आप कृपा कर वर्णन कीजिए। श्रीकृष्ण महाराज बोले कि, हे राजन ! ध्यान देकर सुनो मैं विस्तार के साथ कहता हूं। उस विख्यात एकादशी का नाम *अजिता* है जो सब पापों का नाश करती है।। हरि भगवान की पूजा करके वा इसकी कथा को सुनकर जो उसके व्रत को करता है उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ कि, इससे बढ़कर इस जन्म और परजन्म के हित करने के लिए और दूसरी कोई एकादशी नहीं है। पहले हरिश्चंद्र नाम के विख्यात चक्रवर्ती समस्त पृथ्वी के अधिपति सत्य प्रतिज्ञ राजा थे। किसी कर्म के फल से उसने राज्य भ्रष्ट होकर अपने स्त्री तथा पुत्र का तथा अपने आपका विक्रय कर डाला। वह पुण्यात्मा राजा सत्य प्रतिज्ञ होने के कारण चांडाल का दास होकर शववस्त्र को लेने का काम करनेवाला, तो हुआ किन्तु वह सत्य से विचलित नहीं हुआ और इस प्रकार सत्य को निभाते हुए उसे अनेक वर्ष बीत गये। तब उसे दुःख के कारण बड़ी चिंता उत्पन्न हुईं और विचार किया कि,इसके प्रतीकार के लिए मुझे क्या करना और कहां जाना चाहिए। इस प्रकार चिंता समुद्र में डूबे हुये आतुर राजा को जानकर कोई मुनि उसके पास आया। ब्रह्मा ने ब्राह्मण को परोपकार के लिए ही बनाया है यह समझ उस राजा ने उस श्रेष्ठ ब्राह्मण महाराज को प्रणाम किया। और उन गौतम महाराज के आगे हाथ जोड़ खड़ा होकर अपने दुःख को वर्णन किया। गौतम ने बड़े आश्चर्य से राजा के इन वचनों को सुन इस व्रत का उपदेश किया। हे राजन् ! भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की पुण्य फल के देने वाली *अजिता* एकादशी बड़ी विख्यात है। हे राजन आप उसका व्रत करें तो आपके पापों का नाश होगा और तुम्हारे भाग्य से यह आज से सातवें दिन आनेवाली है। उपवास करके रात मे जागरण करना इस प्रकार इसका व्रत करने से तुम्हारे सब पापों का नाश हो जायेगा। मैं तुम्हारे पुण्य प्रभाव से यहाँ चला आया था, यह कहकर मुनि गौतम अंतर्ध्यान हो गये।
मुनि के इन वचनों को सुन राजा ने ज्यों ही व्रत किया त्यों ही उसके पापों का तुरंत ही अ़त हो गया। हे श्रेष्ठ राजध ! इस व्रत का प्रभाव सुनिये। जो बहुत वर्ष तक दुःख होगा जाना चाहिये उसका जल्दी क्षय हो जाता है। इस व्रत के प्रभाव से राजा अपने दुःख से छूट गया। पत्नी के साथ संयोग होकर पुत्र की दीर्घायु हुई।देवताओं के घर बाजे बजने लगे।स्वर्ग से पुष्प वृष्टि हुई, इस एकादशी के प्रभाव से उसे अकंटक राज्य की प्राप्ति हुई। राजा हरिश्चन्द्र अपनी प्रजा के साथ सब सामग्री सहित स्वर्ग में चला गया।
इस प्रकार के व्रत को हे राजन ! जो द्विजोत्तम करते हैं। वे सब पापों से मुक्त होकर अंत में स्वर्ग की यात्रा करते हैं। तथा इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेघ का फल प्राप्त होता है।
यह श्रीब्रह्माण्डपुराण का कहा हुआ भाद्रपद कृष्ण *अजा*नाम्नी एकादशी का माहात्म्य पूरा हुआ।।

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