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√√√ अक्षय तृतीया
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वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन भविष्य पुराण मे अक्षय तृतीया व्रत कहा है कि, इस दिन तीर्थ मे स्नान और तिलों से पितरों का तर्पण करें, धर्म घटादिकों का दान और मधुसूदन का पूजन करें, क्यों कि, वैशाख मे भगवान का तुष्टि देने वाला पूजन अवश्य कर्तव्य है।
तुला,मकर और मेष राशि मे प्रातः स्नान का विधान है, इसमें हविष्यान्न भोजन और ब्रह्मचर्य, महापापों का नाश करनेवाला है। भगवान का पूजन करके संकल्प पूर्वक ब्राह्मण की आज्ञा प्राप्त करके वैसाख के स्नान का नियम लेना चाहिए। हे मुरारे! हे मधुसूदन! वैसाख मास में मेष के सूर्य मे हे नाथ! इस प्राप्त स्नान से मुझे फल देने वाले हो जाओं और पापों का नाश करो! हे ब्राह्मणों! जो तीर्थ का नाम पता न हो तो उसकों विष्णु तीर्थ कहना चाहिए। चाहे स्त्री हो या पुरुष हो जो नियमपूर्वक प्रातः स्नान करता है, वो सब पापों से छूट जाता है। दश ब्राह्मणों को भोजन भी करवाये।
परशुराम जयंती इसी तृतीया को कहते हैं इसे प्रदोष व्यापिनी लेनी चाहिए। यही भार्गवार्चन दीपिका में स्कंदपुराण और भविष्य पुराण का प्रमाण दिया है,कि वैशाख शुक्ला तृतीया पुनर्वसु में रात के पहिले पहर में परशुराम भगवान् उच्च के छः ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के रहते, रेणुका के गर्भ से अवतीर्ण हुए। ये स्वयं भगवान के अवतार थे।दो दिन प्रदोषव्यापिनी हो अथवा अशतः। दोनों दिन हो तो पूरा ग्रहण करनी चाहिए, नहीं तो पूर्वाही लेनी यही वहां भी भविष्यपुराण से कही है कि, वैसाख शुक्ला तृतीया शुद्धा को व्रत करें, यदि दोनों दिन हो तो,रात के पहिले पहर मे रहे तो दूसरी करनी चाहिए, नहीं तो पहली करनी चाहिए।
यह त्रेता युग की तिथि भी है अतः अन्नदान ,स्नान और हवन करके उसके फल को पाता है। जो वैशाख की पूर्व विद्धा तृतीया को करता है उसके उस हव्व को देव तथा कव्व को पितर लोग नही लेते।
वैशाख की तृतीया को पुष्प, धूप,विलेपनों से लक्ष्मी सहित भगवान जगद्गुरु नारायण का पूजन करना चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन जो पुरुष ,पानी के घड़े के साथ विजनाऔर खाड़ के ओले देता है वो दिव्य लोकों को चला जाता है।
वैशाख शुक्ल तृतीया को गंगा के पानी मे स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन स्नान, जप,होम,स्वाध्याय, पितृतर्पण और दान जो भी कुछ किया जाता है, वो सब अक्षय हो जाता है।यह कृतयुग की सबसे पहले की तिथि है, यह सब पापों के नाश करनेवाली तथा सब सौभाग्यों को देने वाली है।
पहले समय मे एक सत्य का रोजगारी,प्यारा बोलने वाला तथा देव और ब्राह्मणों का पूजक ,सुनिर्मल महोदय नामका बनिया था। उसकी पुण्याख्यान सुनने में रुचि रहती थी, यदि सबके काम मे भी वो व्याकुल होता था, तब भी उसका मन शास्त्र मे ही होता था।एक दिन उसनें रोहिणी नक्षत्र शालिनी अक्षय तृतीया का माहात्म्य सुनाकि,यदि वो बुध संयुक्त हो तो महाफलदायी होती है, उसमें जो दान पुण्य किया जाता है वह अक्षय फलदायी होता है। ऐसा सुन वह वो वैश्यगंगा किनारे पहुंचा, वहां उसने पितृ देवताओं का तर्पण किया, पीछे घर जाकर ,अन्न और पानी के साथ ओले,तथा अन्न और स्वच्छ पानी के भरे हुये दो घड़े, यव,घूम,लवण,सत्तू,दघ्योदन ,ईख,और दूध से बने पदार्थ और सोने ब्राह्मण को दान दिया। मरने के बाद कुशावती पुरी मे क्षत्रिय हुआ,उसको धर्म संयुक्त अक्षय सम्पत्ति हुई। इस बार उसनें बड़े बड़े यज्ञ किये और गाय दान और अनेकों दान दिये। अनेक दीन और अंधो को तृप्त किया ,उसका भंडार कभी खाली नहीं हुआ।
जो अक्षय तृतीया के दिन स्नान तथा देवतर्पण करके एक बार भोजन करता हुआ वासुदेव का पूजन करता है। ब्राह्मण को जौ दे और जौ का ही प्राशन करें।कनक सहित पानी के भरे घड़े सब रस अन्न ,यव ,गोधूम,चणक,सतुआ, दान करे। उदकुंभदान करने से शिवलोक चला जाता है।
ब्रह्मा, विष्णु और शिव रुप धर्म घट मैने दे दिया है इसके दान से पितर और पितामह तृप्त हो जाय।
गन्धोदय और तिलो के साथ तथा अन्न और दक्षिणा सहित घट देता हूं, यह दान पितरों के लिए अक्षय हो जाये। छत्र,जूते, गो,जमीन, सोना, वस्त्र, जो भी कोई भगवान की प्यारी वस्तु श्रीकृष्ण को अर्पण की जायेगी वह सब अक्षय होगी।
अक्षय तृतीया को जो हवन दान किया जाता है वह कभी नाश को प्राप्त नही होता।
इसको अक्षय कहने का एक और कारण भी है कि इसमें अक्षतों से भगवान की पूजा होती है, अक्षतों से स्नान किया हुआ मनुष्य विष्णु भगवान के लिए अक्षतों को दे संस्कृत सतुओं का और अक्षतों का हवन करके वैसे ही अ त और संस्कृत सतुओं को और पक्वान्न को ब्राह्मणों को दे, वह अक्षय फल पा जाता है।
अगर मनुष्य अक्षय तृतीया का व्रत करता है तो सब तीजों के व्रतों का फल पा जाता है।