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*आमलकी एकादशी*
फाल्गुन शुक्ल एकादशी व्रत कथा
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अथ फाल्गुन शुक्ला एकादशी की कथा- मान्धाता बोले कि,हे ब्रह्मा जी से उत्पन्न होने वाले वशिष्ठ जी महाराज! आप कृपाकर ऐसे उत्तम व्रत का उपदेश दीजिए, जिसके करने से मेरा कल्याण हो।
वशिष्ठ जी बोले कि, मैं तुम्हें रहस्य सहित इतिहास युक्त व्रतों के उत्तम व्रत को कहता हूं जो कि, समस्त व्रतों के फलों को देने वाली है। वो महापापों के नाश करनेवाली “आमलकी” एकादशी है जो मोक्ष प्राप्त करनेवाली एवम् सहस्र गोदान के समान पुण्यों को देनेवाली है।
यहां पर इसका एक पुरातन इतिहास कहा करते है कि, एक हिंसक व्याध्र इसके प्रभाव से मुक्त हुआ था। हे राजन ! वैदिश नाम के हृष्ट पुष्ट जनों से आवृत्त एवमम् चारों वर्णों से अलंकृत नगर में चंद्रवंशी चैत्ररथ नामक राजा राज्य करते थे जिसके कि, नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा अन्य लोग बड़े ही खुशी थे,हे नृपशार्दूल! सदा वेद की रुचिर ध्वनि हुआ करती थी। तथा कोई भी नास्तिक तथा पापी मनुष्य कभी भी इनके नगर मे निवास नहीं कर पाता था। चंद्रवंशी शशबिन्दु का वंशधर राजा चैत्ररथ अयुत हाथियों का बल रखता था, तथा सत्यवादी सब शास्त्रों का पारंगत था, उस धर्मात्मा को राज करते हुए कोई भी गरीब रोगी या कृपण मनुष्य उसके नगर में नहीं हुआ था, सदा सुभिक्ष होता था, कभी दुर्भिक्ष या और कोई उपद्रव नहीं होता था। उस नगर में सब लोग विष्णु भगवान् के भक्त थे और राजा भी विशेष रूप से हरि पूजा परायण था। कोई भी पुरवासी मनुष्य एकादशी के दिन भोजन नहीं करता था।सब धर्मों को छोड़कर सभी लोग केवल भगवान् ही की भक्ति में तत्पर थे। हे राजसत्तम ! इस प्रकार जनों को सुख देनेवाले हरिभक्तरत उस राजा को अनेक वर्ष हरिभक्ति मे लीन रहते हुए व्यतीत हो गये। समय के पावन तिथि एकादशी भी आ पहुंची जो फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में आमलकी के नाम से विख्यात है। हे राजन; उसके प्राप्त होने पर वहां के बूढों और बच्चों सबों ने ही नियम पूर्वक उपवास किया। राजा ने भी इस व्रत को महाफलदायी समझकर नदी में स्नान कर भगवान् के मंदिर में सब राजकीय लोगों के साथ। एक पूर्ण कुम्भ को दीपक,छत्र,जूती जोड़ा, पंचरत्न, एवं इत्र आदि वस्तुओं से वैध सजाकर तथा इस पर जामदग्नय की मूर्ति स्थापित कर पूजा की। और मनुष्यों ने भी बड़ी सावधानी से धात्री की पूजा की। हे रेणुका के आनंद बढ़ाने वाले! हे आमलकी की छाया को धारण करनेवाले! हे भुक्ति और मुक्ति को देनेवाले हे जामदग्न्य! हे सब पापों को नाश करनेवाली धाता से उत्पन्न हुई आमलकि! तुम्हें नमस्कार है। मेरे इस दिये हुये अर्ध्य को स्वीकार कर। हे धात्री!तुम ब्रह्म स्वरुपा हो ,तुम्हारी पूजा रामचंद्र जी ने की है, इसलिये मेरी इस प्रदक्षिणा से सब पापों को नष्ट कर। इस तरह सब लोगों ने सर्व स्वभक्ति से रात के समय जागरण किया। इसी बीच वहां पर एक व्याध भी चला आया। जो भूख,थकावट और भार की पीड़ा से कष्ट पा रहा था। कुटुम्ब के वास्ते जीवों का घात करता तथा सभी धर्मों से गिरा हुआ था। उस भूखे व्याध ने आमलकी के निकट जागरण होता हुआ देखा। उस जगह की दीपावली से प्रसन्न होकर उसी जगह बैठ गया। उसको नई बात शोचकर इकबारगीही बड़ा विस्मय हुआ। तथा कुम्भ के ऊपर विराजमान भगवान् दामोदर की मूर्ति का भी दर्शन किया। आमले के वृक्ष को और उस जगह की दीपमाला को देखा। तथा वैष्णवों की कथा को ब्राह्मणों के द्वारा कहते हुए सुना। भूखे रहते हुए भी उसनें एकादशी के माहात्म्य को सुना।और इसी आश्चर्य मे उसकी वह रात्रि जागते हुए समाप्त हो गयीं। प्रातःकाल सब लोग नगर मे चलें गये, और व्याध ने भी प्रसन्न होकर घर मेए आ भोजन किया।
तब कुछ समय के बाद वह व्याध मर गया किन्तु उस एकादशी के प्रभाव से तथा उस दिन रात्रि के जागरण से।जयंती नगरी में राजा विदूरथ के नाम से वह बड़ा भारी राजा हुआ। उसने चतुरंगसेना और धनधान्य से सम्पन्न राज्य पाया। उसने चतुरंग बल से युक्त एवं धनधान्य से समन्वित वसुरथ नाम के पुत्र को उत्पन्न किया। उसने निर्भय होकर दश अयुत ग्रामों का राज्य किया तेज मे सूर्य के और सुन्दरता मे चन्द्रमा के समान था। पराक्रम मे विष्णु के और क्षमा मे पृथ्वी के समान था।बड़ा धर्मात्मा सत्यवादी और विष्णु भक्त ि परायण था। ब्रह्म ज्ञानी, कर्मवीर और प्रजा की पालना करनेवाला होकर भी उसने अनेक प्रकार के यज्ञ किये। वह सदा अनेक प्रकार के दान करता रहता था। एक समय शिकार खेलने गया दैवयोग से उसको रास्ता विस्मृत हो गया, उसे दिशा और विदिशा का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा, उस गहन वध मे अकेला ही वृक्ष के मूल मे। भूखा, प्यासा बैठ रहा इसी बीच उसी शत्रु नाशकारी राजा के पास वहां के पहाड़ी म्लेच्छ लोग आये वैरियों की शक्ति को चूर करनेवाला राजा जहां जाता था वे वहां ही उसके पीछे पीछे पहुंच जाते थे क्यों कि ,राजा ने उनकी दुष्टता के कारण सदा उन्हें दण्ड दिया था, इसी कारण उन्होंने उससे वैर कर रखा था। वे बहुत सी दक्षिणा देनेवाले उस राजा को घेरकर खड़े हो गये, पहिले वैर से वृद्धि तो उनकी विरुद्ध थी ही,इस कारण मारो मारो चिल्लाने लगे ।
पहले इसने हमारे पिता भाई सुत पौत्र भागिनेय और मामा मारे हैं। इन विचारों को घर से निकाल दिया जो दशो दिशाओं में मारे मारे फिर रहे हैं। वे सब ऐसे कहकर राजा को मारने लगे उनके पास पट्टिश,पाश,खाड़े और बाण धनुष चढ़े हुये थे।यद्यपि अनेक प्रकार के सब शस्त्र उस राजा के शरीर पर गिरते थे पर शरीर के अन्दर प्रविष्ट नहीं होते थे। इस कारण म्लेच्छ लोग अपने शस्त्र अस्त्रों के नष्ट हो जाने पर सबके सब प्राणहीन को गये। जब उसके शत्रु चल भी न सके बेहोश उन सबके शस्त्र व्यर्थ हो गये। जो कि ,उस राजा को मारने आये थे, वे सब गरीब बन गये। इसी समय राजा के शरीर से एक स्त्री उत्पन्न हुई जो बड़ी ही सर्वांगसुन्दरी थी। दिव्यगंधयुक्ता और दिव्याभरणको धारण करनेवाली थी। माला भी दिव्य पहिने हुए थी,बड़ी सुन्दर पोशाक पहन कर भी अत्यंत कुटिल नजर से देख रही थी। अंगार जैसे नेत्रों से बहुत सी अग्नि उगलती। हाथ मे चक्र लिए हुए दूसरी कालरात्रि के समान मालूम होती थी। वह अत्यंत कुपित हो उन परम क्लेशितम्लेच्छों पर टूट पड़ी। और जब वे पापी म्लेच्छ लोग मर गये। तब राजा को होश आया। उसने अपने सामने यह आश्चर्य देखा। राजा अपने वैरी म्लेच्छों को मरा हुआ पाकर बड़ा खुशी हुआ। राजा ने मन में शोचा कि ,ये मेरे अत्यंत वैरी म्लेच्छ लोग यहां कैसे एवं किससे मारे गये? किसने मेरे हित की दृष्टि से यह गजब का काम किया।
इसी समय उस राजा को बेहद विस्मय मे पड़ा हुआ देख आकाशवाणी ने उत्तर दिया, कि हे राजन ! केशव भगवान् को छोड़कर और कोई दूसरा शरणागतवत्सल नहीं है। इस वचन को सुनकर विस्मय से आँखें चोर गयीं पीछे उस वन मे से वो राजा अपने राज्य मे कुशलता पूर्वक चला आया।और उस धर्मात्मा ने देवराज की भांति पृथ्वी पर राज्य किया।वशिष्ठ जी महाराज बोले कि, हे राजन ! इसलिये जो श्रेष्ठ लोग आमलकी नाम की एकादशी का व्रत करते हैं वे लोग निश्चित ही विष्णु लोक के अधिकारी होते हैं, इसमें किसी प्रकार का भी विचार न करना चाहिए। यह श्रीब्रह्माण्ड पुराण का कहा हुआ आमलकी नामकी फाल्गुन शुक्ला एकादशी माहात्म्य सम्पूर्ण हुआ।