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हनुमान जयंती पर विशेष :→
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सभी देवताओं की जन्म तिथि का एक निश्चित दिन है, परन्तु ” हनुमानजी ” की दो तिथियां प्रचलन में है।
(१) चैत्र शुक्ल पूर्णिमा ( आनन्द रामायण )+ जैन रामायण (पउम चरित्र)।
(२) कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी ( उत्सव सिन्धु) + ( वायुपुराण )।
आश्विन स्यासिते पक्षे स्वात्यां भौमे चतुर्दशी।
मेष लग्ने अञ्जनीगर्भात् स्वयं जातो हरः शिवः।।
( वायु पुराण )
आश्विन मास के कृष्णपक्ष मे चतुर्दशी तिथि को मंगलवार के दिन, स्वाती नक्षत्र और मेष लग्न मे माता अंजना के गर्भ से स्वयं भगवान शिव हनुमानजी के रूप में प्रकट हुए।
माता अंजना जी को उनकी कठोर तपस्या के पश्चात वायु देवता ने पुत्र का वरदान दिया। महाराष्ट्र प्रदेश के नासिक के पास अंजना गिरी पर्वत की एक गुफा मे श्री हनुमानजी को जन्म दिया।
भगवान शिवजी जी के ११ वें रुद्रावतार है हनुमान जी।
अंजनी गर्भ सम्भूतो हनुमान पवनात्मजः।
यदा जातो महादेवो हनुमान सत्यःविक्रमः।।
( वायु पुराण )
यो वै ऐकादशो रुद्रो हनुमान सः महाकविः।
अवतीर्णः सहायतार्थ विष्णोरमित तेजसः।।
( स्कन्द पुराण )
शिव का अवतार त्रेतायुग में रामावतार पूर्व हुआ था।
एक बार समाधि टूटने पर शिवजी को अति प्रसन्न देखकर माता पार्वती ने कारण जानने की जिज्ञासा प्रकट की।
शिवजी ने बताया उनके इष्ट श्रीराम ,रावण संहार के लिए पृथ्वी पर अवतार लेने वाले है। अपने इष्ट की सशरीर सेवा करने का यह श्रेष्ठ अवसर है।
पार्वतीजी ने अपना बिछोह जान बोली स्वामी रावण तो आपका भक्त है उसके विनाश मे आप कैसे सहायक हो सकते है।
शिवजी ने कहा निसंदेह रावण मेरा परमभक्त है परन्तु वह आचरणहीन हो गया है, उसने अपने दस शीश काटकर मेरे दस रुपो की सेवा की परन्तु मेरा एकादश रुप अपूजित है।अतः दस रुपो से मै तुम्हारे पास रहूंगा और एकादश रुद्र के अंशावतार रुप मे अंजना के गर्भ से जन्म लेकर अपने इष्ट भगवान राम का सहायक बनूंगा।
अंजना कौन ?
अंजना देवराज इंद्र की सभा मे पुंचिकस्थला नाम की अप्सरा थी, ऋषि शाप के कारण पृथ्वी पर वानरी बनी, पुंचिकस्थला के अनुनय विनय करने पर ऋषि ने शापानुग्रह करते हुए उसे रुप बदलने की छूट दी कि वह जब चाहे वानर और जब चाहे मनुष्य का रुप धारण कर सकती है।
पृथ्वी पर अंजना वानर राजकेसरी की पत्नी बनी।
अपने संकल्प के अनुसार शिवजी ने पवनदेव को यादकर तथा उनसे अपना दिव्यपुंज अंजना के गर्भ में स्थापित करने को कहा। एक दिन जब केसरी और अंजना मनुष्य रुप मे उद्यान में विचरण कर रहे थे उस समय तेज हवा के झोके ने उसका आँचल सिर से हटा दिया और उसे लगा कोई उसका स्पर्श कर रहा है। उसी समय पवनदेव ने शिवजी के दिव्य पुंज को कान द्वारा अंजना के गर्भ मे स्थापित किया और कहा ” देवी मैंने तुम्हारा पतिव्रत भंग नहीं किया है” तुम्हें एक ऐसा पुत्र रत्न प्राप्त होगा उसकी कोई समानता नहीं कर सकेगा और वह भगवान श्रीराम का प्रिय होगा।
अपना काम सम्पूर्ण कर पवनदेव जब शिवजी के सामने उपस्थित हुए तब उन्होंने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा, पवनदेव ने स्वयं को अंजना के पुत्र का पिता कहलाने का सौभाग्य मांगा और शिवजी ने तथास्तु कह दिया । इस प्रकार-
” शंकर सुवन केसरी नंदन “
” अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ” कहलाऐ
अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभ देहं दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् सकल गुण निधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रिय भक्तं वातजातं नमामि।।( मानस५/३)
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरु के समान शरीर वाले, दैत्य रुपी वन का ध्वसं करने के लिए अग्नि रुप , ज्ञानियों मे अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवन.पुत्र श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूं।