July 30, 2021

Chaturmas Vrat Rules,Tips: Dev Shayani Vrat Niyam

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देवशयनी- इसी को देवशयनी भी कहते हैं, उसी दिन विष्णु भगवान के शयन करने का व्रत तथा चातुर्मास्य के व्रत का ग्रहण लिया जाता है, यह भविष्यपुराण मे लिखा है।श्रीकृष्ण जी बोले कि, हे राजन्! यह एकादशी शयनी नाम से भी कही जाती है।विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के हेतु इस दिन शयन व्रत किया जाता है।
हे राजन्! इसी दिन मोक्षाभिलाषी मनुष्यों को चौमासे के व्रत का भी आरंभ करना चाहिए।
युधिष्ठिर जी बोले कि हे ,श्रीकृष्ण जी महाराज! इस दिन आपके इस शयन व्रत को और चातुर्मास संबंधी व्रतों को किस प्रकार करना चाहिए? यह आप कृपाकर वर्णन कीजिए। श्रीकृष्ण जी बोले सुनो मैं तुम्हें गोविंद शयन व्रत का तथा चातुर्मास्य मे किये जाने वाले दूसरे व्रतों का भी उपदेश करता हूं।
आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष मे जब कि सूर्य *कर्कराशि* पर हो एकादशी के दिन भगवान जगन्नाथ को स्थापित करें और सूर्य के तुलाराशि पर चले जाने के बाद एकादशी के दिन उपवास करें।

चातुर्मास्य के व्रतों को आरम्भ करने का नियम भी करें।
शंख,चक्र,गदाधारी विष्णु इ प्रतिमा को विराजमान करे। हे युधिष्ठिर! सुंदर श्वेत पलंग पर पीताम्बर और सितवस्त्रधारी भगवान की सुंदर प्रतिमा को तकियों के साथ विराजमान करे। इतिहास पुराण और वेदपरगामी ब्राह्मण दही, दूध, घी,शहद और मिश्री के जल से स्नान करावे। हे पांडव!बढिया धूप,दीप,और गंध से एवं उत्तम पुष्पों से बारबार’सुप्ते त्वयि’ इन मंत्रों से पूजन करें कि जगत के स्वामी आपके सोने पर यह संसार सो जाता है। यदि आप उठ जाते हैं तो यह सब चर और अचर युत संसार प्रबुद्ध हो जाता है। इस प्रकार हे युधिष्ठिर!उस प्रतिमा का पूजन कर उसके आगे हाथ जोड़कर यह निवेदन करे। कि हे प्रभु ! देव प्रबोध के चार महिनों तक मैं पवित्र नियमों का ग्रहण करुंगा, इसलिये आप उन्हें निर्विघ्न पूरा कर दीजिए। इस प्रकार विनीत हो शुद्ध हृदय से भगवान की प्रार्थना करके मेरा भक्त चाहे स्त्री हो या पुरुष हो धर्म के वास्ते व्रत को धारण करें। दंतधावन करने के बाद इस नियम नियमों को ग्रहण करे। भगवान विष्णु ने व्रत प्रारम्भ करने के ५ समय कहे हैं। एकादशी, द्वादशी, पूर्णिमा और अष्टमी तथा कर्क संक्रांति इन दिनों के अंदर यथाविधि पूजन करके व्रत आरम्भ करें।यह चार प्रकार के ग्रहण किया हुआ व्रत कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन समाप्त किया जाता है।

चातुर्मास्य के व्रत प्रारम्भ की तिथि में गुरु,शुक्र के शैशव और मोढ्य का तथा तिथियों के घटने बढ़ने का पहले ही विचार कर लेना चाहिए। स्त्री या पुरुष पवित्र हो या अपवित्र एक भी व्रत करे तो वे सब पापों से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग प्रतिवर्ष हरि का स्मरण करके इस व्रत को करते हैं वे अन्त मे अत्यन्त तेजस्वी विमान के द्वारा ले जाय जाकर विष्णु लोक मे प्रलय पर्यन्त आनन्द करते हैं।
उन सब करनेवालों के पृथक पृथक फलों का श्रवण करों।
जो उत्तम पुरुष देवालय मे सदा ही जाकर उसकी शुद्धि, सिंचाई और गोबर से लिपाई कर रंगवल्ली आदि से सुंदर श्रंगार करता है, सावधानी से जो चौमासेभर व्रत अनुष्ठान करता रहता है और समाप्ति के दिन यथा शक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराता है- वह सात जन्म के अंदर सत्यधर्म सेवी होता है।

दही से,दूध से,घी,शहद और मिश्री से विधिपूर्वक स्नान कराकर भगवान की पूजा करे,इस प्रकार जो मनुष्य चातुर्मास्य के इस व्रत का ,हे राजन!अनुष्ठान करता है वह विष्णु भगवान के सारुप्य को पाकर अक्षय सुख भोगता है। और जो राजा अपनी यथा शक्ति भूमि और स्वर्ण का दान देता है और ब्राह्मण के लिए और देवता के निमित्त फलमूल के साथ दक्षिणा भेंट करता है, वह स्वर्ग मे दूसरे इन्द्र की भाँति अक्षय भोग प्राप्त करता है और विष्णु लोक मे निवास करता है।

भगवान को जो नैवेद्य संयुक्त सुवर्ण का कमल अर्पण करे तथा जो गंध,पुष्प,अक्षतादि से भगवान की पूजा करता है, ब्राह्मण की पूजा करता है और जो मनुष्य नित्य चातुर्मास्य के व्रत को कर भगवान की पूजा करता है उसे अक्षय सुख मिलकर इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।

जो मनुष्य चार महीने तक तुलसीदल को भगवान को अर्पण करता है और सुवर्ण की तुलसी बनाकर ब्राह्मण को भेंट करता है वह सुवर्णनिर्मित विमान से विष्णु लोक मे निवास करता है।
जो मनुष्य देवता के वास्ते गुग्गुल्य की धूप तथा दीपक तथा दीपक अर्पित करता है और समाप्ति मे धूपिया और दीपिया देता है वह हे महाबुद्धे। बड़ा श्रीमान्, सौभाग्यवान और भोगवान् भी होता है।
जो विलशेष कर प्रदक्षिणा नमस्कार करता है तथा कार्तिक की एकादशी पर्यन्त अश्वत्थ या विष्णु भगवान के समीप इस प्रकार पूजा करता है वह निश्चय ही विष्णु लोक जाता है। जो मनुष्य सन्ध्या समय के समय दीपक का दान करता है यानी ब्राह्मण या भगवान के आंगन मे उसे जगाकर रखता है समाप्ति मे दीपक और वस्त्र और सोना दान करता है वह निश्चय ही विष्णु लोक को प्राप्त होता है।

जो मनुष्य श्रद्धा भक्ति के साथ विष्णु चरणामृत पान करता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है, उसका फिर संसार में जन्म नहीं होता।
जो मनुष्य १०८ गायत्री का जप त्रिकाल में भगवान के मंदिर मे करता है उसे कभी पाप नही लगता।
जो मनुष्य नित्य पुराण कथा का श्रवण करता है और जो धर्मशास्त्र सुनता है, सुवर्ण और पुस्तक दान करता है, वह मनुष्य पुण्यवान, धनवान, भोगवान्, सच्चा, पवित्र,ज्ञानवान, प्रसिद्ध और धर्मात्मा होता है। शिवजी का या विष्णु का नाममात्र के मन्त्र को धारणकर समाप्ति के समय सुवर्ण की बनी हुई भगवान की मूर्ति का दान करता है वह मनुष्य पुण्यवान सच्चा और गुणी होता है।

जो मनुष्य नित्यकर्म को करने के बाद सूर्य भगवान को अर्ध्य देता है और सूर्यमण्डल स्थित जनार्दन भगवान का ध्यान करता है, समाप्ति के समय ,सुवर्ण,लाल कपड़े तथा गोदान करता है वह सदा आरोग्य,दीर्घायु, कीर्ति, लक्ष्मी और बल प्राप्त करता है।
जो मनुष्य चातुर्मास्य के अंदर प्रतिदिन भक्ति से१०८ या २८ व्याहृति सहित गायत्री के मंत्र से तिल होम करता है एवं व्रत समाप्ति पर ब्राह्मण के लिए तिलपात्र प्रदान करता है वह मनुष्य मन,वचन,और शरीर के संचित पापों से शीध्र ही मुक्त हो जाता है।
जो मनुष्य बराबर चातुर्मास्य के अन्दर अन्न का होम करता है वह कभी रोगपीड़ित नहीं होता तथा उसे उत्तम सन्तति का लाभ होता है, व्रत समाप्ति के समय घृत का कुम्भ और सुवर्ण वस्त्र सहित प्रदान करे उसे आरोग्य, सौभाग्य और कान्ति का लाभ होता है, उसके शत्रु का नाश होता है और सब पापों का क्षय होता है।

जो मनुष्य पीपल वृक्ष की सेवा करता है, और व्रत अंत मे वस्त्र दान तथा सुवर्ण दान करता है तो वह कभी रोगी नहीं होता।
जो मनुष्य विष्णु प्रीत कराने वाली पवित्र तुलसी को समर्पित करता है तो उससे सब पापों का नाश होता है और विष्णु लोक की प्राप्त होते हैं।
जो मनुष्य भगवान के सो जाने पर अमृतोत्पन्ना दूर्वा को ‘ त्वं दूर्वे’ इस मंत्र से प्रातः काल शिर में धारण करता है तथा व्रत की समाप्ति पर स्वर्ण निर्मित दूर्वा को दक्षिणा के साथ यथाशाखा मंत्र से दे तो उसका कुछ भी अशुभ नहीं रहता एवं सब पापों से छूट जाता है सब भोगों को भोगकर स्वर्गलोक मे प्रतिष्ठित होता है।
जो मनुष्य विष्णु भगवान के और शिव के गुणगान को प्रतिदिन उनके निकट करता है, वह जागरण के फल का भागी होता है, चातुर्मास्य के व्रती को चाहिए कि, भगवान के लिए एक उत्तम घण्टा चढावें।
कि हे जगत् की अधीश्वरी!हे सरस्वती! हे मूर्खता को मिटाने वाली!हे साक्षात् ब्रह्मा की कलत्ररुपे! आपकी स्तुतियाँ विष्णु और रुद्र करते रहते हैं, हे सुंदर मुखवाली! गुरुकी अवज्ञा से तथा अनाध्यायों के अध्ययन से एवम् मेरे अवैध अध्ययन से जो जाड्य उत्पन्न हो उसे दूर करिये। हे लोकों को पवित्र करनेवाली ब्रह्माणी! तू घण्टा दान से प्रसन्न होती है, जो मनुष्य हर रोज ब्राह्मण के चरणों का चरणामृत लेता है। चातुर्मास्य मे ब्राह्मण को मेरा स्वरुप मानकर वो मन, वाणी और शरीर के किये हुए पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य समाप्ति पर एक जोड़ा गौ अथवा एक ही दूध देने वाली गौ को दान करें, तो कभी व्याधि पीड़ित नहीं होता तथा उसकी लक्ष्मी और आयु की वृद्धि होती है।
हे राजेंद्र! यदि इसको देने मेभी असमर्थ हो तो उसको एक जोड़ा वस्त्र ही देना चाहिए। जो मनुष्य सर्व देवता स्वरुप विद्वान ब्राह्मण को प्रणाम करता है उसकी आयु और धन बढ़ता है। जो नित्य कपिला गौ का स्पर्श कर बच्चे के साथ उसे ही भक्ति के साथ अलंकृत करके दे दे तो वह मनुष्य सार्वभौम चक्रवर्ती राजा होता है दीर्घायु और प्रतापी होता है। वह गौ के बालों की संख्या के समान वर्षपर्यन्त इन्द्र की भांति स्वर्ग मे निवास करती है। जो नित्य सूर्य या गणेश को नमस्कार करता है तो उसको आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य और कान्ति प्राप्त होती है। इसमें कभी संदेह मत करों कि ,वह गणेश जी की कृपा से इच्छित फल को पाकर सर्वत्र विजय लाभ करता है।सब कामों का सिद्ध होने के लिए सूर्य की और गणेश जी की सोने की सींदूरी अरुण रंगकीसी चमकनी मूर्ति को ब्राह्मण को अर्पण करें। जो दो ऋतुओं के अंदर शिवजी की प्रसन्नता के लिए रोज चांदी या ताम्र दान करे तो वह शिवजी के भक्त एवं बड़े सुंदर पुत्रों को पावेगा और समाप्ति पर सत्तम चांदी का पात्र शहद से भरकर दे,जबकि तांबे का पात्र गुड़भरकर दे, एवं भगवान के सो जाने पर अपनी शक्ति के अनुसार एक जोड़ा वस्त्र और तिल के साथ सुवर्ण का दान दे तो वह सब पापों से मुक्त होकर इस जन्म मे उत्तम भोग भोगकर अन्त मे शिवजी के धाम मे पहुंचे। विष्णुर्मे प्रीयतामिति= मुझ पर विष्णु भगवान प्रसंन्न हो,इस मंत्र से गंध पुष्पादि से चर्चितकर ब्राह्मण को वस्त्र दान चातुर्मास्य करें और समाप्ति पर शय्या, वस्त्र,तथा सुवर्ण दान करें तो अक्षय सुख तथा कुबेर के समान धन प्राप्त करता है।
वर्षा ऋतु में नित्य जो मनुष्य गोपीचन्दन देता है, भगवान उस पर प्रसन्न होकर भोग तथा मोक्ष प्रदान करते हैं और समाप्ति पर तुला दान करे अथवा उसका आधा या उससे भी आधा तुला दान करे,दक्षिणा सहित वस्त्र दे। जो व्रती पुरुष भगवान के शयन काल मे दक्षिणा सहित शक्कर और गुड़ दान करे तथा व्रत समापन पर उद्यापन करे प्रत्येक ब्राह्मण को ताम्र का आठ आठ पलका एक एक पात्र दे अथवा कृपणता न कर पाव पाव भरका ही दे जो संख्या में ४८ हों तथा शक्कर से पूर्ण हो। प्रत्येक पात्र के साथ दक्षिणा और वस्त्र हों और उनके साथ श्रद्धा से दिया हुआ अन्न भी हो, यह सब श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों को देना चाहिए। इसी प्रकार ताम्र का पात्र भी वस्त्र, शक्कर तथा सुवर्ण के साथ दे तो वह सूर्य से प्रीति कराने वाला, रोगनाशक और पापप्रणाशक होता है। यह सदा पुष्टि कीर्ति, सन्तान एवं समस्त इच्छाओं की पूर्ति, स्वर्ग और आयु को बढा़नेवाला हैं।इसलिए इसके प्रदान करने से मेरी सदा कीर्ति हो, यह उच्चारण कर जो पव्रत को करता है उसका पुण्य फल सुनो।

वह मनुष्य गन्धर्व विद्यायुक्त एवं कामिनी प्रिय होता है, राजा राज्य को ,सन्तानार्थी सन्तान को पाता है। धनार्थी धन को, और निष्काम मोक्ष को पाता है।
जो चार मास तक शाक,मूल,फल आदि यथाशक्ति नित्य ब्राह्मण को देता है तथा व्रत के आंत मे यथाशक्ति दक्षिणा के साथ दो वस्त्र देता है वह चिर काल सुखी राजयोगी होता है। सब देवों के प्यारे एवं सभी मनुष्यों को तृप्ति करनेवाले शाक को देता हूं इससे देवादिक सदा मंगल करें। जो देव शयन की दोनों ऋतुओं मे रोज किसी सुशील ब्राह्मण के लिए सूर्य की प्रीति के निमित्त “कटुत्रयमिदं” यानी ये तीनों कटुसब प्राणे के रोगों को नष्ट करते हैं इस कारण इसके दान से सूर्य देव प्रसन्न हो जाय , इस मंत्र से सोंठ,मरिच,पीपल,इन तीनों चीजों को दक्षिणा और वस्त्र के साथ देता है, एवं इस प्रकार व्रत की समाप्ति मे उद्यापन करता है और उसमें सुवर्ण की सोंठ,मरिच,पीपल बनवाकर दक्षिणा और वस्त्र देता है तो मनुष्य १०० वर्ष जीकर ईच्छाओं से पूर्ण हो अंत मे स्वर्ग प्राप्त करता है।
जो नित्य ब्राह्मण के लिए सच्चे मोती का दान करता है वह हे राजन अन्नवान कीर्तिमान और श्रीमहाभारत होता है। जो जितेन्द्र स्वयं तांबूल छोड़कर दूसरों को तांबूल का दान देता है और व्रत समाप्ति पर लालवस्त्र दान करता है तो वह बड़ा सुंदर एवं सर्वरोगरहित,बुद्धिमान, पण्डित और सुकण्ठ होता है ,गन्धर्वपने को पाकर अन्त मे स्वर्ग जाता है।

ब्रह्मा, विष्णु, शिवजी का रुप देने से ब्रह्मादि देवता खूब लक्ष्मी दें। जो चातुर्मास्य मे प्रतिदिन ब्राह्मण के लिए या सुवासिनी स्त्रीको पुरुष या स्त्री हल्दी का दान करें तथा लक्ष्मी के उद्देश्य से वा पार्वती के उद्देश्य से समाप्ति पर चाँदी का नया हरिद्रा से भरा हुआ पात्र दक्षिणा सहित’ देवी मे प्रीयता उच्चारण करके भक्ति पूर्वक दे तो वह स्त्री पुरुष बड़े सुखी रहते हैं, उत्तम रुपलावण्य को पाकर देवी के लोक मे प्रतिष्ठित होते हैं। जो शिवजी पार्वतीजी के उद्देश्य से चौमासेभर ब्राह्मण जोड़े को यथाशक्ति पूजकर ‘उमेशःप्रीयतामिति’ के उच्चारण से दक्षिणा सहित सुवर्ण दान करें भगवान उमा शिव की मूर्ति उद्यापन के समय सुवर्ण की बनाकर पंचोपचार पूजनकर दे साथ ही गौ तथा बैल भी दे,ब्राह्मणों को उत्तम भोजन करावे तो उसका फल के प्रभाव से कीर्ति और लक्ष्मी को रक्षापूर्वक प्राप्त होता है और सब सुखों को भोगकर अन्त मे शिवलोक मे चला जाता है।
जो मनुष्य चौमासे मे निरालस होकर फलदान करे,तथा समाप्ति के समय ब्राह्मणों को चांदी का दानकर वह सब मनोरथो को तथा उत्तम न मिटनेवाली सन्तति को पाकर उस फलदान के माहात्म्य से नंदनवन में आनंद करता है।यदि किसी ने पुष्पदान व्रत किया हो तो उसे सुवर्ण पुष्प का दान करना चाहिए।वह सब सौभाग्य पाकर गंधर्व पद को प्राप्त करता. है।भगवान के शयन करने पर चातुर्मास्य मे निरालस होकर नित्य वामन भगवान् के उद्देश्य से ब्राह्मणों को दही, अन्न तथा स्वादिष्ट षडरस भोजन करावे अथवा उनको दे तथा एकादशी के दिन भोजन न करे। ऐसे भोजन का दान करे तथा ग्रहण आदि में भी दान करे अपनी रोज के दान करने की सामर्थ्य न हो तो शक्ति के अनुसार पांच पर्वो मे यानी भूताष्टमी,अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और शुक्रवार इनमें भोजन का दान करे।और इस प्रकार करके व्रत समाप्ति मे यथा शक्ति भूमि का दान करे तथा भूमिदान की अशक्ति मे सिंगरी हुई गाय का दान करें और यदि इसमें भी असमर्थ हो तो वस्त्रया सुवर्ण सहित पादुका का दान करें तो अक्षय अन्न और पुत्र पौत्र आदि संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा स्थिर भक्तिता लाभ होकर वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है! जो मनुष्य नित्य ही दूध देनेवाली गाय अलंकृत सुंदर गाय का दान करता है उसके बछड़े और दक्षिणा के साथ तो वह सर्व ज्ञानी होता है, वह दूसरे किसी का पराधीन न होकर ब्रह्म लोक मे चला जाता है और अपने पितरों सहित अक्षय सुख को पाता है।जो मनुष्य वर्ष मे चौमासे के अंदर प्राजापत्य व्रत को करता है तथा समाप्ति पर एक जोड़ा गौ का दान करके ब्राह्मणों को भोजन कराता है वह सब पापों से रहित होकर सनातन ब्रह्म की प्राप्ति करता है। एकांतर उपवास करने पर आठ हल, सुवर्ण वस्त्र सहित बैलों से दान करे और मन मे भावना करे कि, चलाने योग्य हल को और सब सामग्री सहित दो बैलों को भगवान् की प्रीति के लिये दान करता हूँ।जो मनुष्य शाक,मूल,फल से चातुर्मास्य का व्रत करें और समाप्ति पर गौदान करे तो वह वैकुण्ठ मे चला जाता है।। केवल दूध मात्र से व्रत करनेवाला मनुष्य भी सनातन ब्रह्म लोक को जाता है, तथा व्रतांत जो मनुष्य दूध देने वाली गौ को देता है। रोज दोनों ऋतुओं मे केला और पलाश के पत्र मे भोजन करता है तथा वस्त्र और कांसी के पात्रों का दान करता आ वह सुखी रहता है और दान देती वार भावना करे कि काँशी ब्रह्मा, कांसीशिवहै,कांसी ही लक्ष्मी और सूर्य है और कांसी ही विष्णु है, इसलिये वह मुझे शान्ति दें।

जो मनुष्य नित्य ही तैलाभ्यंग को छोड़कर पालाश पत्रमेभोजन करे वह रुई को अग्नि की भांति अपने पापों को नष्ट करता है। ब्रह्म हत्या करने वाला, शराबी,बालहत्या करनेवाला, असत्यवादी, स्त्री घाती,व्रतघाती, अगम्यागामी,विधवागामी,चानडालीगामीऔर ब्राह्मण स्त्रीगामी आदि महापापी मनुष्य भी इस व्रत के प्रभाव से पापरहित होते हैं, समाप्ति पर चौसठ पल कांस्य पात्र सवत्सा गाय दूध देने वाली जो कोई ब्राह्मण को दे एवं नारायण का स्मरण करके पृथ्वी को लीपकर भोजन करेऔर यथाशक्ति बहुजला उर्वरा भूमिका दान करे वक्ष आरोग्यवान पुत्रवान और धर्मात्मा राजा होता है, उसे शत्रु का भय नहीं होता तथा वैकुण्ठ मे जाता है। जो मनुष्य, सुवर्ण, चंदन,षडरस भोजन सहित बैल का अयाचित दान करता है वह बैकुण्ठ मे चला जाता है।

जो भगवान के शयन करने पर रात मे व्रत करता है और अंत मे ब्राह्मणों को भोजन कराता है वह शिव लोक मे प्रतिष्ठित होता है। जो एक समय से एक मात्रा से भोजन करके चातुर्मास्य में भगवान का पूजन करता है वह स्वर्ग मे जाता है।
जो मनुष्य समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा दे और भगवान् के शयन करने पर पृथ्वी पर शयन करें और सब सामग्री सहित शय्या का दान करे वह शिवलोक मे प्रतिष्ठित होता है।जो आषाढ़ से आश्विन तक नख आदि को नहीं काटता वह आरोग्यवान,पुत्रवान तथा धार्मिक राजा होता है। गौरीशंकर भगवान की प्रसन्नता के लिए जो मनुष्य चातुर्मास्य के अंदर दूध, नमक,घी,शहद,तथा फलों का त्याग करे फिर उन्हें कार्तिकी पूर्णिमा पर ब्राह्मण को भेंट करे वह शिव व्रत के प्रभाव से शिवलोक चला जाता है। जो अच्छे जौ या चावल का भोजन करे वह पुत्र पौत्र आदि के साथ शिवलोक में प्रतिष्ठित होता है।
तैलाभ्यंग को छोड़ जो विष्णु भक्त सदा व्रत करके वर्षा मे विष्णु भगवान् की पूजा करे तो वह वैष्णव गति को पाता है।व्रत समाप्ति पर सुवर्ण सहित कांस्य पात्र को तेल से भरकर ब्राह्मण को दान करे तथा वर्ष भर में चार माह तक शाक का त्याग करेऔर व्रतांत मे हरिभगवान के निमित्त दश शाक सहित एक चांदी का पात्र वस्त्र से ढककर वेदपराग ब्राह्मणों का यथाशक्ति पूजन कर व्रत सम्पूर्ण होने के लिए दक्षिणा सहित उनको दान करे तो वह शंकर की कृपा से शिवसायुज्य को प्राप्त करता है।
जो गेंहूं को छोड़ भोजन करे और कार्तिक की पूर्णिमा पर सुवर्ण के गेंहू बनाकर वस्त्र के साथ दान करे तो उसे अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। सब प्राणियों को गेहूं बल, पुष्टि प्रदान करता है और हव्य कव्य में मुख्य है, इसलिये वे मुझे लक्ष्मी प्रदान करें यह दान करने का मंत्र है।

आषाढ़ आदि चार महिने तक बैंगन, करेला, तूमा,परवल इनका त्याग करे,तथा और अप्रिय फलों को छोड़ दें और चातुर्मास्य का व्रत करे एवं उसके समाप्त होनि पर उन छोड़ी हुयी वस्तु को चाँदी से बनवाकर बीच मे मूंगा रखें और ब्राह्मणों को यथाशक्ति और यथाभक्ति दक्षिणा सहित दान करें तथा देतीवार अपने इष्टदेव का स्मरण कर देवो मे प्रीयताम मेरा इष्टदेव मुझपर प्रसन्न हो का उच्चारण करे तो वह दीर्घायु, आरोग्य, पुत्र,पौत्र सौन्दर्य अक्षय कीर्ति और संतान को पाकर स्वर्ग में प्रतिष्ठित होता है। श्रावन मे शाक, भादों मे दही, आश्विन मे दूध और कार्तिक मे दाल, इन चारों चीजों का नित्य ही छोड़देना चाहिए। तथा चातुर्मास्य मे कूष्मांडा, उडद, मूली,गाजर ,करौंदा, ईख,,मसूर ,बैंगन , इन चीजों को नित्य ही त्याग दें ,विशेष कर चार मास शयन काल मे बेर ,तुरई,और इमली को त्याग दें।

भक्तिवान मनुष्य खाट या पलंग पर सोना छोड़ दे,ऋतु के सिवा स्त्री का त्याग करें। मधुवल्ली और सहजने का चौमासेभर पर त्याग करें। जिसके पेट मे बैंगन ,तरबूज, बील, गूलर, भिस्सटा जीर्ण होते हैं उससे हरि भगवान् दूर रहते हैं। उपवास मे एक बार भोजन करें प्रातः और सांयकाल पूजन करें तो हरिलोक मिलेगा। शहद को त्याग दे राजा होगा, गुड त्याग करने पर पुत्रपौत्र वर्धन दीर्घायु संतान प्राप्ति होगी। हे राजन तेल त्याग करने से सुंदर होता है। कौसुंभतेल का त्याग करने से शत्रुनाश होता है।
मधूकतेल के त्याग से सौभाग्यवान। कडवी, तिक्त,खट्टा, मीठा,कषाय, और नमकीन रसों को छोड़कर कभी बदसूरत और दुर्गंध को प्राप्त नहीं होता। तांबूल का त्याग करनेवाले रोगी रोग मुक्त हो जाते हैं। दही,दूध के त्याग से गोलोक पाता है, स्थालीपाक के त्याग से इन्द्रलोक एवम् एकान्त उपवास से ब्रह्म लोक। जो चातुर्मास्य मे नखरोम धारण करता है, हे राजन ! वह कल्प पर्यन्त जीवित रहता है। जो मनुष्य चौमासे में प्राजापत्य व्रत को करता है वह तीन प्रकार के पापों से निर्मुक्त हो जाता है।
जो चार माह दूधमात्र से इन चारों महीनों को निर्वाह करता है उसका वंव कभी नाश ही नहीं होता।

हे अर्जुन पंचगव्य का सेवन करने से चांद्रायण का फल मिलता है। इह प्रकार के व्रतों से भगवान् केशव प्रसन्न होते हैं। दुग्ध समुद्र के अंदर शयन करनेवाले अनन्त भगवान् जिस दिन सोते और उठते हैं उस दिन अनन्य भक्तिपूर्वक उपवास करनेवाले मनुष्यों को गरुडासन भगवान् शुभगति प्रदान करते हैं।
यह श्री भविष्य पुराण की कही हुई विष्णु शयनी एकादशी के महात्म्य की कथा पूरी हुई।

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