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विष्णुशयनी एकादशी (देवशयनी/ कमला एकादशी) ( पद्मा एकादशी ) कथा माहात्म्य.
आषाढशुक्ल पद्या एकादशी कथा – श्रीब्रह्माण्डपुराण
देव शयनी एकादशी कथा- श्रीभविष्यपुराण
अनेक कष्टों से एवं पापों से मुक्ति का उपाय जाने!
चातुर्मास्य मे क्या खाऐं और क्या करें ?(part 2)
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युधिष्ठिर जी बोले कि, हे केशव ! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है और क्या विधि है? उस दिन किस देवता की पूजा होती है! इसका आप वर्णन कीजिये।
कृष्ण जी बोले कि , हे राजन ! ब्रह्मा ने महात्मा नारद को जिस आश्चर्यजनक कथा का उपदेश दिया था वहीं मैं आज तुम्हें कहती हूं। नारद जी ब्रह्मा जी से बोले कि, विष्णु भगवान के आराधन के लिए आषाढशुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसका आप प्रसन्न होकर कथन कीजिए। ब्रह्मा जी बोले कि, हे मुनिराज ! आप वैष्णव हैं कलियुग में प्राणियों का हित करनेवाले हु वा लड़ाई आपको ज्यादा प्यारी है इस लोक मे हरिवासर से अधिक पवित्र और कोई दिन नहीं है। सभी पाप के नाश करने के हेतु इसको प्रयत्नपूर्वक करें, इस कारण मैं तुम्हें शुक्लएकादशी के व्रत का वर्णन करता हूं।
एकादशी का व्रत पवित्र है पापनाशक और सब कामों को पूर्ण करनेवाली है। जिन मनुष्यों ने इसको नहीं किया वे सब नरक के जाने वाले हैं।
आषाढ़एकादशी का नाम पद्मा है।इस उत्तम व्रत को भगवान की प्राप्ति के वास्ते अवश्य करना चाहिए। मै तुम्हारे सामने इसकी पवित्र पौराणिक कथा को कहता हूं। जिसके सुनने मात्र से महापाप नष्ट हो जाते हैं।
सूर्य वंश मे एक मान्धाता नाम के राजर्षि उत्पन्न हुये थे, वे चक्रवर्ती सत्यप्रतिज्ञ और बड़े प्रतापी थे। उन्होंने अपनी प्रजा का औरस पुत्रों की भाँति धर्म से पालन किया था। उनके राज्य में आधि व्याधि या दुर्भिक्ष कभी नहीं होता था। उसकी प्रजा निर्भय और धनधान्य से पूर्ण थी। उस राजा के कोष में अन्याय से उपार्जित किया हुआ द्रव्य नहीं था। उसको इस प्रकार राज्य करते हुए अनेक वर्ष बीत गये परन्तु कभी पापकर्म के करने से उसके राज्य में तीन वर्ष पर्यन्त वृष्टि न हुई, इससे उसकी प्रजा भूख से व्याकुल हो गई। धनधान्य के अभाव में उसकी प्रजा स्वाहा, स्वधा,और वषट्कार तथा वेदाध्ययन रहित हो रही थी। सब प्रजा ने राजा के आगे जाकर निवेदन किया और कहा कि, महाराज! आप इस प्रजा हितकारी वचन को सुनिए। विद्वान लोग पुराणों से ‘नारा’ शब्द का अर्थ आप अर्थात जल कहते हैं। जल भगवान का स्थान है; इसलिये भगवान् का नाम नारायण है। सर्वव्यापी भगवान विष्णु पर्जन्य अर्थात मेघरुप हैं।वहीं वृष्टि करते हैं। वृष्टि से अन्न तथा अन्न से प्रजा उत्पन्न होती है, उसके अभाव में प्रजा का विनाश होता है। इसलिए हे कुरुश्रेष्ठ!ऐसा यत्न करों जिससे प्रजा का योगक्षेम हो।
राजा ने कहा आप लोग सत्य कह रहे हैं।मिथ्याभाषण नहीं किया।अन्न ब्रह्म स्वरुप है और अन्न ही के अंदर सब कुछ स्थिर होता है।अन्न से भूत उत्पन्न होते हैं, अन्न से ही सब जगत रहता है । यह बात बड़ें बड़े पुराणों मे वर्णन की है। राजाओं के दोष से प्रजा मे पीड़ा उत्पन्न होती है पर मैं विचार करके भी अपने किये हुये दोष को नहीं जानता। तो भी प्रजा के हित के वास्ते यत्न करुंगा, इस प्रकार विचार कर वह कुछ सेना लेकर जंगल में चला गया और मुख्य मुख्य तपस्वी मुनियों के आश्रम में भ्रमण करने लगा। उसनें ब्रह्म पुत्र अंगिरस नाम के ऋषि का दर्शन किया, जो दूसरे ब्रह्मा की भाँति तेज से सब दिशाओं को प्रकाशित कर रहे थे, उनको देखकर राजा प्रसन्न हो घोड़े से उतर पड़ा। हाथ जोड़कर उनके चरणों मे प्रणाम किया। मुनिजी ने स्वास्तिवाचन पूर्वक उसका अभिनंदन किया और राज्य के सप्तांगका कुशलक्षेम पूछा।
राजा ने अपनी कुशलक्षेम बताकर मुनि से अनागम पूँछा इसके बाद मुनि ने राजा के आगमन का कारण पूँछा?
राजा ने मुनि शार्दूलजी को अपने आने का कारण निवेदन किया। राजा ने कहा कि हे भगवन्! धर्मविधिसे प्रजा का पालन करते हुए भी मेरे राज्य में अनावृष्टि का दुःख है और इसका कारण कुछ भी मेरी समझ में नहीं आता। महाराज इस संशय को दूर करने के वास्ते मैं आप के निकट आया हूं। आप योगक्षेम के विधान से प्रजा के इस दुःख की शांति कीजिये। ऋषि जी बोले कि, हे राजन्! यह सब युगों से उत्तम कृतयुग है।इसमें ब्राह्मण प्रधान वर्ण है और चतुरपाद धर्म है। इस युग में ब्राह्मण के अतिरिक्त और कोई तपस्या नहीं कर सकता पर तुम्हारे राज्य में हे राजन्! एक शूद्र तप करता है। उसके इस अकर्म से वर्षा नहीं होती।आप उसके वध.का यत्न कीजिये जिससे दोष शांत हो जाय।
राजा ने कहा कि, महाराज!मैं उस निरपराध तप करते हुए व्यक्ति को नहीं मारना चाहता किन्तु इस दोष के नाश के वास्ते कोई धर्म का उचित उपदेश दीजिये। ऋषि बोले कि, राजन!यदि ऐसी ही बात है तो आप आषाढशुक्ल मे विख्यात “पद्मा” नाम की एकादशी का व्रत कीजिए।उसके व्रत के प्रभाव से आपके राज्य में अवश्य ही सुवृष्टि होगी।यह सब उपद्रवों को नाश करनेवाली तथा सब सिद्धियों को देने वाली है। हे राजन! इस दिन आप अपने सब परिवार के साथ अवश्य व्रत कीजिये।मुनि के इन वचनों को सुनकर राजा अपने घर चला गया।उसने अपनी सब प्रजा के और चारों वर्णो के साथ आषाढशुक्ल एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार उस व्रत के करने पर पृथ्वी पानी से भर गई और सत्य सम्पन्न हो गई और भगवान की कृपा से सब लोग सुखी हो गये हे राजन!इसी कारण से इस उत्तम व्रत को अवश्य करना चाहिए। यह लोगों की भुक्ति और मुक्ति का देने वाला है। इसके पढ़ने तथा सुनने से सभी पापों से मुक्त हो जाता है। यह श्री ब्रह्माण्डपुराण की कही हुई आषाढ़ शुक्लएकादशी “पद्मा” एकादशी के व्रत के माहात्म्य की कथा पूरी हुई।।