259 total views, 1 views today

कार्तिक शुक्ल एकादशी( श्रीस्कन्धपुराण द्वारा )
*देव प्रबोधिनी एकादशी* १४ नवम्बर २०२१
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अथ कार्तिक शुक्ल एकादशी की कथा- ब्रह्मा जी बोले- हे मुनिराज! प्रबोधिनी एकादशी का पापनाशक पुण्यवर्द्धक तथा ज्ञानियों को मुक्तिदायक माहात्मय सुनो ।।
हे विप्रेन्द्र! पृथ्वी पर गंगा भागीरथी का गर्जन तब तक ही है जब तक कि प्रबोधिनी एकादशी नहीं आती ।। सिर से लेकर समुन्द्रपर्यन्त सारे तीर्थ जब तक ही गर्जना करते हैं जब तक कि, कार्तिक मास की पापनाशक विष्णु तिथि प्रबोधिनी नहीं आती। प्रबोधिनी के एक ही उपवास से उत्तम साधक को सहस्त्रों अश्वमेघ का और सैकड़ों राजसूर्य यज्ञ का फल प्राप्त होता है। नारद जी बोले कि, एक भक्त मे क्या एवं नक्त भोजन मे क्या पुण्य है तथा उपवास में क्या पुण्य है? हे पितामह! यह मुझे समझाकर कहिए। ब्रह्मा जी बोले कि , एक भक्त से एक जन्म का एवं नक्त से दो जन्म का तथा उपवास से सात जन्म का पाप नष्ट होता है। यह हरिप्रबोधिनी एकादशी ऐसे पुत्र को देती है, जो दुर्लभ हो, जो किसी तरह भी न मिल सके,जो कि, तीनों लोकों में गोचर न हो। मेरुऔर मंदराचल के बराबर भी जो उग्र पाप हो वे सब एक ही उपवास से दग्ध हो जाते हैं। पहिले सहस्त्रों जन्मों से दुष्कर्म इकट्ठे किए हैं, प्रबोधिनी का जागरण तूल राशि की तरह जला देता है। जो स्वभाव से ही प्रबोधिनी का विधिपूर्वक उपवास करता है। हे मुनि शार्दूल! उसे यथोक्त फल मिलता है। जो मनुष्य थोड़ा भी सुकृतविधि के साथ करता है, हे मुनिश्रेष्ठ! उसको वह मेरु के बराबर हो जाता है। जो मनुष्य विधि के साथ मेरु के बराबर भी पुण्य करता है, हे नारद ! उस धर्म का वह अणुमात्र भी फल नहीं पाता।जो मनुष्य मनोवृत्ति द्वारा प्रबोधिनी के व्रत करने को सोचते हैं, उनके पहिले सौ जन्म के किए, पाप नष्ट हो जाते हैं।
प्रबोधिनी की रात को जो मनुष्य जागरण करता है, वह भूत,भविष्य और वर्तमान दश हजार कुलों को शीध्र ही विष्णु लोक को ले जाता है। पहले किए हुए कर्मो से प्राप्त हुए नारकीय दुःखों से मुक्त हुए एवं भूषणादिकों से सजे हुए पितरलोग प्रसन्नता के साथ विष्णु लोक में चले जाते हैं। मनुष्य ब्रह्महत्या आदि के घोर पातकों को भी करके हरिवासर मे जागरण करके हे मुने! सब पापों को भगवान की कृपा से धो डालते हैं। जिस फल को ब्राह्मण अश्वमेध आदि यज्ञों से भी प्राप्त नहीं कर सकते वह प्रबोधिनी एकादशी के जागरण मात्र से सुखपूर्वक पा लिया जाता है।। सब तीर्थों का स्नान और अनेकों गऊ तथा कांचन और मही का दान करने से फल नहीं मिल सकता जो कि, इस हरिदिवस मे जागरण करने से मिलता है। जिसनें कार्तिक मास में प्रबोधिनी एकादशी के दिन उपवास किया है, हे मुनिशार्दूल ! वहीं एक इस धरातल पर पुण्यात्मा उत्पन्न हुआ,और उसने ही अपना कुल पवित्र किया है। जो मनुष्य विधिपूर्वक प्रबोधिनी एकादशी व्रत करता है उसके घर में त्रिलोकीभर के सब तीर्थ आकर निवास किया करते है। सब मनुष्यों का कर्तव्य है कि वे सब कर्तव्य कर्मो का परि त्याग करके चक्रपाणि भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मे हरिप्रबोधिनी के दिन उपवास करें, वही एक ज्ञानी योगी, तपस्वी और जितेंद्रिय है, जिसने विष्णु भगवान की परम प्रिया ,धर्म के सार देनेवाली प्रबोधिनी एकादशी व्रत किया है। जो मनुष्य जन्मभर में एकबार भी प्रबोधिनी एकादशी के दिन उपवास करता है, वह मोक्षभाक् होता है, वह फिर कभी भी गर्भवास का क्लेश भागी नहीं होता है।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागरण करने से गोविंद भगवान् मनुष्य के कायिक, मानसिक, वाचनिक समस्त पापों को धो देते है। हे वत्स! जो मनुष्य भगवान पुरुषोत्तम देवदेव की प्रीति का उद्देश्य लेकर प्रबोधिनी एकादशी के दिन स्नान, दान,जप,और होम करते हैं, वह उनका किया हुआ सुकृत अक्षय होता है। इस व्रत के अनुष्ठान से जनार्दन भगवान् को संतुष्ट करनेवाला मनुष्य समस्त दिशाओं को पुण्य तेज से प्रकाशमान करता हुआ विष्णु धाम को पधारता है। हे वत्स! वाल्य,यौवन, और वार्धक्य अवस्थाओं तथा सैकड़ो जन्मों मे स्वल्प या बहुत जो पाप किया हो हे मुने! उन सब पापों को प्रबोधिनी एकादशी के दिन गोविंद भगवान् अपने पूजक के पूजन से संतुष्ट होकर दूर करते हैं। चंद्र या सूर्य ग्रहण के समय काशी ,कुरुक्षेत्र तीर्थों में दान आदि करने से जो पुण्य फल की प्राप्ति होती है, उससे सहस्र गुणी प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागरण से फल प्राप्ति है। और एक बार भी जिसने प्रबोधिनी एकादशी के दिन उपवास नहीं किया है, उसनें जन्म से मरण तक जो पुण्य किये हैं, वे सब व्यर्थ होते हैं।
हे नारद ! कार्तिक मास मे विष्णु भगवान् का व्रतानुष्ठान न करने से जन्म भर किये पुण्यों का फल भागी नहीं होता है। हे विप्रेन्द्र! इसलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुप सब अभिलषित फलों के देनेवाले देवदेव जनार्दन पूजन अच्छी तरह अवश्य करना चाहिए। अर्थात भगवान् के पूजन करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती है। विष्णु भगवान् की सेवा में तत्पर रहता हुआ जो नर कार्तिक मास में परान्न भक्षण नहीं करता है, उसको चान्द्रायण व्रत करने का फल अवश्य प्राप्त हो जाता है। हे मुनिसत्तम! कार्तिक मास में भगवान् मधुसूदन देव की कथाओं के श्रवण कीर्तन आदि से जैसी प्रसन्नता होती है, वैसी प्रसन्नता न यज्ञों से और न दानों से ही होती है। जो विद्वान कार्तिक मास में विष्णु भगवान् की कथा का कीर्तन करते हैं और जो श्रद्धालु भक्त समाहित होकर उस कथा का आधा श्लोक या एक श्लोक भी सुनते हैं उनकों १०० गौ दान का फल प्राप्त होता है। और हे मुनिशार्दूल! जो मनुष्य कार्तिक मास मे अपने स्वर्गादि सुखों के लिए या धन आदि के लोभ के वशमे पड़कर भी भगवान् की कथा का श्रवण करता है, वह अपने १०० कुलों का उद्धार करता है। जो नर नियमपूर्वक एवं कार्तिक मास में विशेष रूप से भगत्कथा का श्रवण करता है वह सहस्त्र गोदान का फलभागी होता है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन जो मनुष्य कथा करता है, हे मुने! वह सप्तद्वीप अर्थात समस्त पृथ्वी के दान करने के फल को प्राप्त होता है। हे मुनिशार्दूल! जो मनुष्य भगवान् की कथा श्रवण करके अपनी शक्ति के अनुसार कथा कहने वाले कथावेत्ता विद्वान का पूजन करते हैं, उनकों अक्षय वैकुण्ठधाम प्राप्त होता है। ऐसे जब ब्रह्मा जी ने कहा, यब ब्रह्मा जी के इन वचनों को सुनकर नारदमुनि फिर बोले कि, हे स्वामिन् ! हे सुरोत्तम! एकादशी के दिन जिस प्रकार के व्रत करने से जैसा फल मिलता है, उस विधि का आप कथन करो। नारद मुनि ने जब ऐसी प्रार्थना की, उसे सुनकर ब्रह्मा जी ने उत्तर किया।
हे द्विजोत्तम ! एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शय्या से उठकर मल मूत्र आदि क्रिया करे, फिर दन्तधावन करके नदी,तलाब,कूप,वापी या इनमें पूर्व पूर्व के अभावमें उत्तर उत्तर में एवं सबके अभाव मे अपने घर पर ही शुद्ध जल से स्नान करे,व्रत करने का नियमपालन करने के लिए ” एकादश्यां” इस वक्ष्यमाण मंत्र का उच्चारण करे। इसका यह अर्थ है कि, हे पुण्डरीकाक्ष! हे अच्युत! मैं आज एकादशी के दिन निराहार रहूँगा और दूसरे दिन भोजन करुंगा। अतः इस मेरे नियम को आप निभावें। क्योंकि, मैं आप की शरण हूँ।। इस प्रकार नियम करके देवदेव चक्रपाणि भगवान् का भक्ति से पूजन करे,फिर चित्त को प्रसन्न रखता हुआ उपवास करे। हे मुने! भगवान् के स्थान में रात्रि भर जागरण करे। गान, नाच, वाद्य तथा भगवत्कथा का कीर्तन करे। कार्तिक में प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान् का पूजन,बहुत से पुष्प फल, कपूर, अगर तथा केसर,चंदन आदि करना चाहिए।। किन्तु प्रबोधिनी के दिन भगवान् का पूजन जब करे,उस समय धन रहते हुए कृपणता न करे,अपने वैभवानुसार सामग्री मँगवाकर हरिका पूजन करे। इस परम पवित्र दिन में भगवान् के नानाविध दिव्य फलों का भोग भक्ति भाव से लगाना चाहिए। जब पूजन करे, तब शंख मे जल भर के भगवान् जनार्दन को अर्द्धदान करे। समस्त तीर्थों के सेवन से जो पुण्य फल उपार्जित किया हो,तथा जो जो दान करके फल लाभ किया है।वह सब पुण्य प्रबोधिनी एकादशी के दिन अर्द्धदान करने से कोटि गुणा अधिक हो जाता है। जो मनुष्य अगस्त्य के पुष्पों से जनार्दन भगवान् का पूजन करे उसके सम्मुख साक्षात् देवराज भी अञजली बाँधकर प्रणाम करता है, अर्थात अपना दासभाव स्वीकार करता है, अगस्त्य पुष्पों से पूजन करने से हृषीकेश भगवान् जो उपकार करतें हैं, हे विप्रेन्द्र! उस उपकार को तपश्चर्या से प्रसन्न किये हुए भी नहीं करतें हैं। हे कलिवर्द्धन ! ( परस्पर में कलह को बढ़ाने वाले ) जो मनुष्य कार्तिक मास में बिल्वपत्रों से परम प्रेमपूर्वक कृष्ण भगवान् का पूजन करते हैं, उनको मोक्ष प्राप्त होता है, यह मेरा कहना है।
कार्तिक मास में जो नर तुलसी के दलों से तथा मञ्जरियों से विष्णु का पूजन करते हैं, उनके अयुत जन्मों के भी किये पापों को विष्णु भगवान् दग्ध कर देते हैं। तुलसी का दर्शन, स्पर्शन, ध्यान कीर्तन, प्रणमन, स्तवन, आरोपण,सेचन तथा प्रतिदिन पूजन करना श्रेयस्कर होता है। जिन्होंने कार्तिक मास में प्रतिदिन पूर्वोक्त दर्शनादि नौ रीतियों से भक्तिपूर्वक तुलसी का सेवन किया है। भगवान् के वैकुण्ठ धाम मे हजार कोटियुग पर्यन्त वह निवास करते हैं, जिन्हों की लगायी हुई तुलसी पृथ्वी पर बढ़तीं है। उन्होंने कुल मे जो अद्यावधि उत्पन्न हुए हैं, जो उत्पन्न होवेंगे उनका भगवान् के धाम मे सहस्र कल्पकोटियुग पर्यन्त निवास होता है।
कदम्ब के.पुष्पों से जो मनुष्य जनार्दन देव का पूजन करते हैं उन्हीं का यमराज के स्थान में जाकर रहना, चक्रपाणि जनार्दन की प्रसन्नता से नहीं होता है। कदम्ब पुष्प को देखकर भी केशव देव प्रसन्न होते हैं। फिर कदम्ब के पुष्पों से पूजन पर प्रसन्न हुए हरि सब अभिलषितार्थ पूर्ण करे, इसमें सन्देह करना ही व्यर्थ है। मनुष्य पाटला के पुष्पों से गरुडध्वजदेव की परमभक्ति से पूजा करता है, वह मुक्ति का भागी होता है। जो नर मौलसरी एवम अशोक के पुष्पों से जगदीश्वर का पूजन करते हैं, वे चंद्र, सूर्य जब तक प्रकाश करेंगे, तब तक शोक भागी नहीं होते हैं।
हे विप्रेन्द्र! जो मनुष्य सफेद या काले करवीर के पुष्पों से जगन्नाथ भगवान् की आराधना करते हैं, उनके ऊपर केशव सदैव सन्तुष्ट रहते हैं। जो नर सुगंधित वाले आम की मञ्जरी को भगवान् के ऊपर चढ़ाते हैं, वे परम भाग्यशाली हैं और कोटिगोदान के फलभागी होते हैं। जो मनुष्य पूजा के समय नारायण के ऊपर कोमल दूर्वा के अंकुर समर्पित करता है, वह मनुष्य पूजन करने के शतगुणित फल का भागी होता है। हे नारद! जो मनुष्य शमीपत्रों से आनंदकारी भगवान् का पूजन करते हैं, उन्होंने अत्यंत भयंकर भी यमराज की पुरी के जाने वाले रस्ते के भय से छुटकारा पा लिया।। और जो नित्य वर्षा काल मे चम्पा के पुष्पों से पूजन करते हैं वे बारम्बार जन्मने के जाल से फिर कभी भी नहीं पड़ते हैं। जो मनुष्य जनार्दन भगवान् के ऊपर सुवर्ण के समान उज्जवल केतकी के पुष्पों का समर्पण करता है, उसके कोटि जन्मों में भी किये पापों को गरुडध्वज देव दग्ध कर देते हैं। केसर के समान लाल आकार वाली सुगंधित शतपत्रिका/ कमलिनी को जगन्नाथ जी पर समर्पण करता है, वह श्वेतद्वीप वाले भगवान् के दिव्यधाम मे निवास करता है। ऐसे प्रबोधिनी एकादशी के दिन रात मे भोग और मुक्ति के देनेवाले केशव का पूजन करते हैं, हे ब्रह्मन्! दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर जलपूर्ण नदी के तट पर पहुंचकर जो उसके जल में स्नान करते हैं, फिर स्नानोत्तर गायत्री का जप करके पूर्वा ऊचित तर्पणादि कर्मों को करते हैं, पीछे उनको अपने घर पर जाकर शास्त्रानुसारेण भगवान् नारायण का पूजन करना चाहिए। किये व्रत की साग्ड़तया पूर्णता के लिये विद्वान का कर्तव्य है कि, वह फिर ब्राह्मण को भोजन करावे। सुमधुर वचनों एवं भक्ति पूर्ण चित्त से उन ब्राह्मणों से अपने पापों की निवृत्ति के लिये क्षमा प्रार्थना करे। पीछे भोजन कराकर तथा वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित करके आचार्य का पूजन करे।चक्रपाणि भगवान् की प्रसन्नता के लिए दक्षिणा और गौ का दान करे फिर अभ्यागत एवं दूसरे दूसरे उस समय के उपस्थित ब्राह्मणों को भूयसी दक्षिणा अवश्य ही अपनी शक्ति के अनुरुप दे। फिर व्रत करने का जो नियम धारण किया था, उस नियम का ब्राह्मणों के सम्मुख बैठकर विसर्जन करे। एवं कहे कि, मैनें जो व्रत करने का नियम किया था वह अब तक निभाया, अब मैं उसका विसर्जन करना चाहता हूँ, फिर शक्ति के अनुरुप ब्राह्मणों के लिए दक्षिणा दे। हे राजन्! नक्त भोजी को चाहिए कि, उत्तम ब्राह्मणों को भोजन करावे।
ऐसी प्रतिज्ञा वाले व्रती पुरुष का कर्तव्य है कि, वह बिना मांगे सुवर्ण और बेलका दान करे जो व्रती मांसभक्षी न हो वह गऊ को दक्षिणा रुप से आचार्य को प्रदान करे। कार्तिक मास में आंवलों को घिसकर उनकी पीठी लगाकर स्नान करनेवाला दधि और मधु का दान करे। हे राजन्! फल खाकर व्रत करनेवाला व्रती पुरुष मधुर मधुर फलों को दे। तैल खाना जिसने छोड़ा हो वह फिर यदि तैल खाना चाहे तो घृतका दान करे और जिसने घृत खाना छोड़ा हो वह दूध का दान करे, धान्यभोजी शाली चावलों का दान करे। पृथ्वी तलपर शयन के नियम के पालन करनेवाला सोड सोडिया एवं तकिया से परिष्कृत शय्या का दान करे। पत्तल मे भोजन करनेवाला व्रतीघृत पूर्ण भोजन पात्रों को दे।। मौन व्रत धारण करनेवाला व्रत के अन्त मे घण्टा, तिल और सुवर्ण का प्रदान करे। अपने केशों को नहीं कटाऊंगा इस प्रकार का व्रती विद्वान दर्पण को दे। जूतियाँ पहिनना जिसने छोडा हो, वह जूतियों का जोडा दे । नमक खाने का त्याग करनेवाला शक्कर का दान करे। विष्णु या अन्य किसी देवता के मंदिर मे नित्य दीपक जलाने का नियमी जन घृत और बत्ती से संयुक्त तामे का दीपपात्र सामर्थ्य विशेष हो तो सुवर्ण का दीपपात्र। विष्णु भक्त ब्राह्मण के लिए अपने व्रत को पूरा करने के लिये दे। मैं एक दिन के अंतर से भोजन करुंगा अर्थात एक एक दिन छोड़कर दूसरे दूसरे दिन एकबार भोजन करुंगा, इस प्रकार का व्रती व्रत के अंत में आठ कुंभो का दान करे। और उनके साथ वस्त्र सुवर्ण और अलंकार भी देवे।
हे मुने!यदि यथोक्त दानादि करने की शक्ति न हो तो वह व्रत की साड़्गतया पूर्ति के लिए ब्राह्मण से कहावे,अर्थात ” तुम्हारा व्रत पूर्ण हो गया” ऐसे वचन ब्राह्मण से बुलावे। क्योंकि, ऐसे समय में ब्राह्मण के वचन ही सिद्धि करनेवाले होते हैं। फिर ब्राह्मणों को प्रणाम करे, उन्हें विसर्जित करके आप भोजन करे। जिसने आषाढ़ शुक्ला देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक वर्षा तके चार महीने पर्यन्त वस्तु जो छोडी हो,उसकी समाप्ति इस प्रबोधिनी के ही दिन करे।
हे पार्थ ! जो मनुष्य पूर्वोक्त रीति से व्रताचरण करता है उसको अनन्त फल मिलता है। शरीर परित्याग करने पर वैकुण्ठ लोक चला जाता है। हे राजन जिसने चार मास पर्यन्त निर्विघ्न व्रत निभाया है। वह कृतकृत्य हो गया, उसे फिर किसी यज्ञादि करने की आवश्यकता नहीं। वह फिर मनुष्य योनि मे नहीं आता है, किन्तु स्वर्ग में ही देवता होकर आनंद भोगता है। हे महीपाल! जो हमने विधि कही है उसके अनुसार व्रत करने से व्रत परिपूर्ण हो जाता है। व्रतानुष्ठान की विधि में विकलता करने से अन्धा और कोढी होता है। हे राजन ! जो तुमने यहाँ व्रत की विधि पूछी थी,वह सब विधि मैनें तुम्हें कह दी इस विधि के भी पठन और श्रवण से गौ के देने का फल प्राप्त होता है।
यह श्रीस्कन्धपुराण का कहा हुआ कार्तिक शुक्ला एकादशी के व्रत का माहात्म्य समाप्त हुआ।।