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जप मे निषिद्ध कर्म
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१- स्त्री संसर्ग, और स्त्री चर्चा वर्जित है।
२- उबटन, तेल और क्षौर (हजामत) छोड़ दे।
३- भगवान को भोग लगाकर एक बार ही भोजन करें।
४-नित्य स्नान, सन्ध्या वंदन ,नित्यकर्म करें।
५- बिना स्नान, नग्नावस्था साधना न करें।
६- जप के बीच मे बातचीत न करें।
७- अति आवश्यक मे बात करें पर आचमन अंगन्यास भी
८- मलमूत्र त्याग कर स्नान कर आचमन अंगन्यास करें।
९- आलस्य, जँभाई, नींद, छींक, थूकना, गुप्तेंन्द्रियां स्पर्श और क्रोध बातचीत वर्जित है।
१०- जप न जल्दी करें न अत्यंत धीमा।
११- मंत्र गाकर न जपे, सिर हिलाना, लिखा पढ़ना वर्जित
१२- प्रथम दिन जितना जप नित्य उतना ही जप करे।
१३- भूमि शयन,ब्रह्मचर्य,गुरुसेवा, मौन,त्रिकाल स्नान, पापकर्म त्याग, नित्य पूजा, नित्य दान,देव प्रार्थना, नैमित्तक पूजा, इष्ट साधना, जप निष्ठा आवश्यक है।
१४ – पतित वार्ता नहीं।
१५- अनुष्ठान बीच मे न छोड़े।
१६- उबटन,इत्र,पुष्प, चर्म पादुका न उपयोग करें।
१७- भूमि पर अपनी शय्या पर किसी को बैठने न दे।
१८- अधिक वस्त्र पहनकर मंत्र न जपे।
१९- खाते समय या सोकर उठकर तुरंत ही जप न करें।
२०- पैर फैलाकर जप न करें,भूख पीड़ित भी जप न करें।