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स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति के लिए भारत मे जन्म लेना होगा
भू -लोक मे → ” कर्म भूमि और भोग भूमि “
भारत वर्ष मे→ अभिनव कर्म की उत्पत्ति भी & भोग भी
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गायन्ति देवाः किल गीतकानि,धन्यास्तु ये भारतभूमि भागे
स्वर्गापवर्गस्य फलार्जनाय,भवन्ति भू यः पुरुषाः सुरत्वात।
पृथ्वी पर भी जो जीव मनुष्य रुप मे भारत वर्ष मे जन्म लेते हैं वे सर्वश्रेष्ठ होते है।यहां तक कि देवतागण भी अपना कर्मफल बढाने और स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति के लिए भारत मे जन्म लेते हैं।
कर्मभूमि पृथ्वी के सिवा अन्यत्र विद्यमान नहीं, पृथ्वी पर भी सर्वत्र भोग स्थान की ही प्रधानता है, किन्तु कर्मभूमि एकमात्र भारत वर्ष है। भारत मे कर्म की उत्पत्ति भी होती है, और कर्मफल का भोग भी,परन्तु भारत के आलावा(अन्यत्र) भोग होता है।
अभिनव कर्म सर्वत्र उत्पन्न नही होता, परन्तु अन्यत्र भोग होता है। यही विशेष कारण है कि हिन्दू अवतार सारे ही भारत वर्ष में प्रकट हुयें।
कर्मभूमि मे जीवों का मातृगर्भ से जन्म होता है, अन्य लोकों मे नहीं।
हम जम्बूद्वीप की बात करेंगे इसमें निम्नलिखित अनुसार भोग/कर्म भूमि का बँटवारा है-
भारत वर्ष → कर्म भूमि।
हैमवत वर्ष → जघन्य भोग भूमि= आयु एक पल।
हरि वर्ष → मध्यम भोग भूमि = आयु दो पल।
विदेह वर्ष → सुमेरु पर्वत है।
रम्यकवर्ष → मध्यम भोग भूमि = आयु दो पल।
हैरण्यक वर्ष → जघन्य भोग भूमि = आयु एक पल।
ऐरावत वर्ष → कर्मभूमि ।
विशेष भोग भूमि मे संतान को जन्मते ही माता पिता मृत्यु को प्राप्त होते हैं। क्योंकि आयु अत्यंत कम होती है।
जम्बूद्वीप मे भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र मे षट्काल परिवर्तन होने से इसे ये भोग भूमि भी है एवं कर्म भूमि भी अर्थात दोनों की व्यवस्था है।
भोग भूमि – शाश्वत है।
कर्म भूमि – अशाश्वत है।
भरत क्षेत्र एवं एरावत क्षेत्र में [ आर्यावर्त्त है ]
प्रथम काल → उत्तम भोग
द्वितीय काल → मध्यम भोग
तृतीय काल → उत्तम भोग
चतुर्थ काल → कर्म भूमि।
विदेह क्षेत्र → उत्तम भोग भूमियाँ हैं, यहां आयु तीन पल।
अतः भोग भूमि =०६ भरत,ऐरावत, हैमवत,हैरण्यवत,हरि,रम्यक।
कर्म भूमि =०२( भरत क्षेत्र + ऐरावत क्षेत्र )
अतः धन्य भाग्य वो लोग जो देवभूमि, पूर्णभूमि, पुण्य भूमि भारत मे पैदा हुए हैं। जहां से मोक्ष – अपवर्ग दोनों की राहें खुली है।