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धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा उपासना का दिन है धनतेरस :-
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कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनद त्रयोदशी है व्रतकल्पद्रुम आदि व्रत ग्रन्थों में कुबेर की उपासना के लिए प्रतिमास त्रयोदशी को कुबेर व्रत का विधान वर्णित है। इसकी फल श्रुति मे कहा गया है कि ऐसा करने से व्रती धनाढ्य, सुख-समृद्धि से सम्पन्न एवं आरोग्य को प्राप्त करता है।
कुबेर की उपासना से दुःख-दारिद्र्य दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
शिव के अभिन्न मित्र होने से कुबेर की भक्ति से सभी प्रकार की आपत्तियों से रक्षा होती है।
पुराणों मे कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष माने गए हैं। उन्हें ‘धनाध्यक्ष’ कहा गया है। वे समस्त यक्षों, गुह्यकों और किन्नरों इन तीन देवयोनियों के अधिपति हैं। ये नवनिधियों के स्वामी हैं।
पद्म, महापद्म, शंख, मकर,तक्षक,मुकुंद, कुन्द,नील, वर्चस् नामक नौ निधियों में से यदि एक भी निधि हो,तो वह अनन्त वैभव प्रदाता होती है।
इसी कारण धनाध्यक्ष कुबेर सभी प्रकार के वैभव के देवता माने गए हैं।
पुराणों के अनुसार कुबेर यक्षों के राजा हैं और इनकी राजधानी अलकापुरी है। अलकापुरी के सम्बंध में मान्यता है कि यह उत्तर दिशा में हिमालय के पार्श्व भाग में स्थित है।यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि राक्षसों का राजा रावण कुबेर का सौतेला भाई था। दोनों के पिता महर्षि विश्रवा थे। रावण का जन्म विश्रवा की पत्नी कैकसी से हुआ,वहीं कुबेर का जन्म विश्रवा की दूसरी पत्नी इडविडा( इलविला) से हुआ था। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि कुबेर की माता भरद्वाज की पुत्री थीं। विश्रवा का पुत्र होने के कारण इनका नाम वैश्रवण भी है।
कुबेर को दिक्पाल पद की प्राप्ति एवं यक्षराज
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कुबेर ने सहस्त्रों वर्ष तक कठोर तप किया।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी आदि ने इन्हें उत्तर दिशा का दिकपाल बनाया।महर्षि विश्रवा ने दक्षिण समुद्र तट पर त्रिकूट नामक पर्वत पर निर्मित लंकापुरी निवास करने की आज्ञा दी। वहाँ उन्होंने यक्षों को बसाया और यक्षराज कहलाए।
पुष्पक विमान की प्राप्ति
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ब्रह्मा जी ने कुबेर की तपस्या से प्रसन्न होकर इन्हें पुष्पक विमान भी प्रदान किया। पुष्पक विमान विश्वकर्मा जी द्वारा बनाया गया था, यह सोने एवं रत्नों से निर्मित था।यह चारों ओर से मोतियों की जाली से ढ़का हुआ था। यह तीव्र गति से चलने वाला विमान था।
यक्षों के राजा हैं, परन्तु स्वयं देव हैं~
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कुबेर यक्षों के राजा हैं। यक्षों की गणना न देवों में होती है और न मनुष्यों में और न ही राक्षसों में होती है। यद्यपि यक्षों के पास देवताओं के समान शक्तियां होती हैं, परन्तु उन्हें देवता नहीं माना जाता। शास्त्रों मे यक्षों को उपदेव की श्रेणी में रखा गया है। उपदेव वे हैं, जो बल,बुद्धि, तेज,स्फूर्ति, विद्या, शक्ति आदि में देवताओं के समान हों।
इस श्रेणी में यक्षों के अलावा निम्न नौ वर्ग भी सम्मिलित होते हैं।विद्याधर, अप्सरा, राक्षस, गन्धर्व, किन्नर, पिशाच, गुह्यक,सिद्ध,भूत आदि।
यक्षों के अधिपति होने पर भी कुबेर को देव पद प्राप्त हुआ है और उनकी प्रायः सभी पूजा, यज्ञ आदि में दिकपाल के रुप में पूजा होती है।
कुबेर जी की कृपा प्राप्त करने हेतु निम्न मंत्र का जप करें।
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।।