443 total views, 5 views today

मन और बुद्धि को समझकर दुविधा को समाप्त कीजिये।
★★★★■★★★★■★★★★■★★★★
अन्तिम निर्णय की सामर्थ्य ही महत् तत्व या बुद्धि है। अव्यक्त प्रकृति से निकले तत्व महत् हैं।अव्यक्त मूल प्रकृति ही प्रधान प्रकृति है। ये प्रकृति -अपरा प्रकृति और परा प्रकृति दो भागों में विभाजित है।
अपरा प्रकृति अष्टधा है ,ये त्रिगुणात्मक और योनिस्वरुपा है।( भगवत् गीता अध्याय ७ श्लोक ४ )
प्रधान मूल प्रकृति – त्रिगुणातीत,कालातीत एवं समस्त अवतारों का बीज है( गीता अध्याय ७ श्लोक ५ )
ये चार हाथों में मातुलुंग,गदा,खेट,पानपात्र अर्थात मातुलुंग मतलब ईच्छा शक्ति, गदा माने क्रियाशक्ति , खेट माने ज्ञान शक्ति धारण किये हैं। मस्तक मे नाग-काल/समय, लिंग मे पुरुष ,योनि मे अपरा प्रकृति धारण किए है। इस महामाया से जो महत् तत्व निकलता है उसे बुद्धि कहा गया है ये चार प्रकार की:
(१)बुद्धि
(२) मेधा बुद्धि
(३) ऋतम्भरा बुद्धि
(४) प्रज्ञा बुद्धि ।
प्रज्ञा को ही इंटेलिजेंस कहते है। बुद्धि से आगे का क्रम मन है ये भी चार प्रकार का होता है
(१) प्राज्ञ मन – इन्द्रिय मन है।
(२) प्रज्ञान मन – सर्वेन्द्रिय विज्ञानात्मा मन है।
(३) महान मन – सत्तत्व है यही पुरुष का आधार है।
(४) अव्यय मन – ब्रह्म है जो सबका आधार है।
भावस्तू मनसो धर्मा, भाव मन मे उठते हैं।
तथा आठ भाव बुद्धि मे भी रहते हैं।
धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य,अनैश्वर्य इनमें पहले ४ सात्विक भाव तथा अन्तिम ४ तामसिक भाव हैं।
ज्ञान से मोक्ष होगा, तथा अज्ञान से बंधन प्राप्त होगा।
धर्म से ऊपर उठेगा, तथा अधर्म से पतित हो जायेगा।
वैराग्य से प्रकृति का विलय होगा,अवैराग्य से संसार चक्र
ऐश्वर्य से कष्ट दूर होंगे, अनैश्वर्य से कष्ट घेरे रहेंगे।
तथा शक्ति की आराधना, उपासना कीजिए और विवेक से काम करिए।