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सौंदर्य की प्राप्ति एवं नरक के भय से मुक्ति का पर्व नरक चतुर्दशी―
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दीपावली का दूसरा पर्व है। रुप चतुर्दशी और इसी दिन हनुमान जयंती भी मनायी जाती है।
इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व उबटन से स्नान करना चाहिए तथा प्रातःकाल यम तर्पण एवं प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान करना चाहिए।
ऐसा करने से यम यातना नहीं मिलती।
धर्मग्रन्थों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को बली का राज रहता है इसलिए दीपमालिका प्रज्वलित करनी चाहिए। ऐसा करने से सुख-समृद्धि स्थायी रुप से आती है, तेल के दीपों का प्रयोग करना चाहिए।
वर्ष में हनुमान जयंती दो बार मनाई जाती है।
(१) चैत्र शुक्ल पूर्णिमा
(२) कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी।
छोटी दीपावली है यदि किसी पूर्वज की मृत्यु दीपावली पर हुई है, तो ऐसी स्थिति में वे लक्ष्मी पूजन आदि कृत्य रुपचतुर्दशी को सम्पन्न करते हैं।
पुराणों के अनुसार इस दिन निम्नलिखित प्रमुख कार्य किए जाने चाहिए :-
(१)उबटन से स्नान
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यह स्नान तेल एवं उबटन लगाकर किया जाना चाहिए। मान्यता है कि इस स्नान से यमलोक नहीं देखना पड़ता, क्योंकि इस दिन तेल में लक्ष्मी तथा जल में गंगा का निवास होता है।
तैले लक्ष्मीर्जले गंगा दीपावल्याश्चतुर्दशीम्।
प्रातः स्नानं तु यः कुर्यात यमलोकं न पश्यति।।
स्नान के बीज मे अपामार्ग को तीन बार सिर के ऊपर से घुमाना चाहिए। निम्नलिखित मंत्र उच्चारण भी करें
सीतालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः।।
पुराणों मे कथा है कि ऐसा करने से नरक के भय का नाश होता है। स्नान कर भीगे वस्त्रों में ही मृत्यु के रुप दो श्वानों को मंत्र पढ़ते हुए दीपदान दें-
शुनको श्यामशवलौ भ्रातरौ यमसेवकौ।
तुष्टौ स्यातां चतुर्दश्यां दीपदानेन मृत्युजौ।।
(२) यमतर्पण:-
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स्नान के बाद यमतर्पण किया जाता है। शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर यमराज के निम्नलिखित १४ मंत्रों का उच्चारण करते हुए यमतर्पण करना चाहिए। यमतर्पण काले और सफेद तिलयुक्त जल से करना चाहिए।
(1) ऊँ यमाय नमः।
(२) ऊँ धर्मराजाय नमः।
(३) ऊँ मृत्यवे नमः।
(४) ऊँ अन्तकाय नमः।
(५) ऊँ वैवस्वताय नमः.
(६) ऊँ कालाय नमः।
(७) ऊँ सर्वभूतक्षयाय नमः।
(८) ऊँ औदुम्बराय नमः।
(९)ऊँ दध्नाय नमः।
(१०)ऊँ नीलाय नमः।
(११) ऊँ परमेष्ठिने नमः।
(१२) ऊँ वृकोदराय नमः।
(१३) ऊँ चित्राय नमः।
(१४) ऊ चित्रगुप्ताय नमः।
इसे जिनके पिता जीवित भी हैं, उनके द्वारा भी किया जा सकता है। इस यमतर्पण मे यज्ञोपवीत को कण्ठी की तरह रखें और दक्षिणाभिमुख होकर प्रत्येक मंत्र के साथ ३-३ बार जलांजलि देवतीर्थ से अर्पित करें। चूंकि यम देवता में धर्मराज के रुप मे दैवत्व और यमराज के रुप मे पितृत्व ये दोनों अंश विद्यमान होते हैं इसीकारण इसे काले और सफेद तिल से युक्त जल से किया जाता है।
(३) दीपदान:-
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भविष्यपुराण के अनुसार दीपदान सभी जगह करें तथा प्रदोषकाल मे करना चाहिए। यमराज को सन्तुष्ट करने के लिए तिल के तेल से भरे हुए प्रज्वलित एवं पूजा किए हुए १४ दीपक लगाने चाहिए
यम- मार्गान्धकार-निवारणार्थ चतुर्दश-दीपानां दानं करिष्ये।
इसके आलावा एक चौमुखा दीपक निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रज्वलित करें।
दत्तो दीपश्र्चतर्दश्यां
नरकप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः
सर्वपापानुत्तये।।
(४) दीपमाला प्रज्वलन :-
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पौराणिक मान्यता है कि दीपावली पर पाँच दिन तक राजा बलि का राज रहता है अतः घर मंदिर आदि विभिन्न स्थानों पर प्रदोषकाल मे दीप प्रज्वलन करें।
(५) हनूमानुत्सव :-
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हनुमानजी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि में हुआ था। इसलिए अर्द्धरात्रि मे हनूमानुत्सव किया जाना चाहिए। रात्रि जागरण करें तथा सुन्दरकाण्ड आदि का पाठ करें।
(६) दारिद्रय निस्तारण:-
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वस्तुतः यह दरिद्रता एवं अलक्ष्मी को घर से बाहर निकालने की प्रतीकात्मक प्रक्रिया है। इसे कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के पश्चात किया जाना चाहिए। इसके लिए घर की अनावश्यक टूटी-फूटी चीजों को घर से बाहर फेंक देना चाहिए। साथ ही दीपावली पर प्रातःकाल शंखध्वनि एवं मंगलगान करने चाहिए।