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★★★★★श्रावण शुक्ला एकादशी★★★★★
************★पुत्रदा एकादशी★*************
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°18 अगस्त 2021°°°°°°°°°°°°°°
अथ श्रावण शुक्ल एकादशी की कथा- युधिष्ठिर जी बोले कि , हे मधुसूदन ! श्रावण शुक्ल पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? इसको आप प्रसन्नता से कहिये ।
श्रीकृष्ण जी महाराज बोले कि, हे राजन् ! इसकी पाप हारिणी कथा का श्रवण करो, जिसके सुनने से ही बाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
द्वापर युग मे माहिष्मती पुरी के अंदर पहले महीजत् नामक राजा अपने राज्य का पालना करता था, किन्तु उसका पुत्रहीन राज्य उसके लिए सुख नहीं था। क्योंकि पुत्रहीन व्यक्ति को इस लोक मे और परलोक में दोनों जगह सुख नहीं है। इस राजा को पुत्र प्राप्ति के उद्योग में बहुत सा समय व्यतीत हो गया फर सर्व सुख को देने वाला पुत्र उत्पन्न न हुआ। उस राजा ने अपने को बड़ी अवस्था में देखकर चिन्ता के साथ सभा मे बैठकर प्रजा के बीच मे यह वचन कहे ।कि हे लोगो! मैंने इस जन्म मे कोई पाप नहीं किया तथा कोष मे कभी अन्याय का धन नहीं जमा किया। ब्राह्मण का माल तथा देव सम्पत्ति मैंने कभी नहीं ली। पाप फल को देने वाली कभी अमानत में खयानत भी नहीं की। पुत्र की भांति प्रजा का पालन किया है।धर्म के साथ पृथ्वी का विजय किया और पुत्र के समान प्यारे बन्धुओं को भी दुष्टता करने पर दण्ड दिया है।
शिष्टों का आदर किया है। इस प्रकार धर्म पूर्वक अपने उचित रास्ते पर चलने पर भी हे ब्राह्मणों! मेरे घर मे पुत्र क्यों नहीं उत्पन्न हुआ? इसका विचार करों।
प्रजा और पुरोहित के साथ ब्राह्मणों ने राजा के इन वचनों को सुन आपस मे सलाह करके गहनवन मे यात्रा की।राजा का भला चाहते हुए, उन्होंने इधर उधर ऋषियों के आश्रमों की तलाश की। और नृपति के हित के उद्देश्य से प्रेरित हो एक मुनिराज को भी देख लिया। जो घोर तपश्चर्या मे मग्न था । चिदानन्द ब्रह्म का ध्यान करने के कारण उसी मे लीन था, निरामय था, निराहार था, आत्मा को उसनें जीत रखा था। क्रोध भी उसके पास नहीं भटकने पाता था। सदा अक्षुण्य स्थायी रहने वाला था। उसका नाम लोमश था। तत्व को जानने वाले थे, सब शास्त्रों परम प्रवीण थे। , महात्मा थे तथा अनेक ब्रह्माओं की सम्मिलित आयु से भी बडीइनकी आयु थी।
एक कल्प मे इनका एक ही लोम गिरता है, इसी कारण इनका नाम लोमश है। ये तीनों कालों के जानने वाले महामुनि थे। उन्हें देखते ही सब प्रसन्न होकर उनके समीप चले आये, जैसे करनी चाहिए, जिसके भी वो योग्य थे उसी तरह उनके लिए नमस्कार किया। विनीतभाव से झुककर सब लोगों ने परस्पर कहा कि, भाग्य ही से इस मुनि राज का दर्शन हुआ । उनको उस प्रकार प्रणाम करते देख ,मुनिराज ने कहा कि , तुम लोग यहां क्यों आये हो ? इसका कारण कहो। मेरे दर्शन के आनंद मे क्या तुम लोग स्तुति करते हो। मै निःसंदेह तुम्हारा कल्याण करुंगा। मुझ जैसे मनुष्यों का जन्म परोपकार ही के लिए होता है। यह निःसंदेह बात है, लोगों ने कहा- सुनिए महाराज! हम लोग आने का कारण कहते हैं। हम आपके पास संशय को दूर करने के वास्ते यहां आये हैं। क्योंकि ब्रह्मा जी के अतिरिक्त आपसे बढ़कर कोई दूसरा सर्वश्रेष्ठ नहीं है, इसलिए कार्य वश आपके पास आना हुआ है ।
यहां पर महीजत् नाम के एक पुत्रहीन राजा है। हम लोग उसके पुत्र की भाँति पाली हुई प्रजा हैं। उसको पुत्र रहित देखकर उनके दुःख से दुखी हैं। हे मुनिराज ! हम लोग आस्तिक बुद्बि से इस जगह तप करने को आये हैं, किन्तु राजा के भाग्य वश , हे द्विजराज! आपके हमें यहां दर्शन हो गये। बडे आदमियों के दर्शन ही से कार्यसिद्धि होती है इसलिए महाराज! आप ऐसा उपदेश दीजिए, जिससे राजा पुत्रवान हो। ऐसे उनके वचन सुनकर मुनिराज ने ध्यानपूर्वक विचार किया और उसके पूर्व जन्म के हाल को जानकर-
मुनिराज लोमशजी बोले कि, पूर्व जन्म में यह राजा धन हीन वैश्य था, जो अत्याचार करता था। ग्राम ग्राम घूमकर वाणिज्य वृत्ति करता रहता था। ज्येष्ठ महीने के शुक्लएकादशी के दिन मध्यान्ह के समय वह प्यासा होकर किसी ग्राम की सीमा मे पहुंचा। उसने उस जगह किसी सुंदर जलाशय को देखकर जल पीने की इच्छा की, वहाँ हाल ही की ब्याई हुई एक सवत्सा गौ भी आ पहुंची। वह गर्मी से पीड़ित तथा प्यास से आकुल होकर उसके जल को पीने लगी। परंतु उसको पीते हुए देखकर उसे बंद कर स्वयं उस जल को पी गया।
उसी कर्म के फल से राजा पुत्रहीन हुआ है और पूर्व जन्म के पुण्य से अकंटक उसे जो राज्य मिला है।
लोगों ने कहा कि, महाराज! पुराणों में सुना करते हैं कि, पुण्य करने से पाप का क्षय होता है। इसलिए किसी पुण्य का उपदेश दीजिए, जिससे राजा के पाप का नाश हो। जिससे कि, महाराज की कृपा से राजा के पुत्र उत्पन्न हो। लोमशजी ने कहा कि, श्रावण शुक्ल एकादशी मे पुत्रदा नाम की एकादशी तिथि विख्यात है। हे लोगों! तुम लोग उसका विधिपूर्वक ठीक ठीक शास्त्रोक्त रीति से जागरण के साथ व्रत करो।उसका उत्तम फल तुम लोग राजा को दे दो। ऐसा करने से निश्चित ही राजा के पुत्र होगा। मुनि राज के इन वचनों को सुनकर हर्ष से उछलते हुए खिले नेत्रों वाले वे लोग प्रणाम कर अपने अपने घर चले गये। श्रावण के आ जाने पर लोमशजी के वचनों को याद कर उन सब ने श्रद्धा के साथ राजासहित व्रत किया और एकादशी का पुण्य फल द्वादशी के दिन राजा को दे दिया। पुण्यदान करने पर उसी समय रानी को सुंदर गर्भ हुआ और प्रसव काल आने पर उसनें तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया। इसलिए हे राजन! इसका पुत्रदा नाम विख्यात है। दोनों लोकों के वास्ते सुखाभिलाषी मनुष्यों को यह करनी चाहिए। इसका माहात्म्यसुन पापों से छूट जाता है, तथा इस जन्म में पुत्रसुख को प्राप्त कर अन्त मे स्वर्ग को चला जाता है। यह भविष्य पुराण में कही हुयी पुत्रदा नाम की श्रावण शुक्ला एकादशी का माहात्मय कथा पूरी हुयी।