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अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति – भाग 12

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सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृति यान्ति मामिकाम्।कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यसम।प्रकृ स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः।भूतग्राममिमं कृत्स्न्मवशं प्रकृतेर्वशात्।। गीता९/७-८हे कुन्ती नंदन अर्जुन, कल्प की...