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आईये जानते है कि वृहस्पति देव इस दौरान क्या स्थिति में होगें।
एक उक्ति है―
” क्रूरा वक्रा महाक्रूराः,सौम्या वक्रा महाशुभाः”
गुरु शुभ ग्रह है अतः गुरु अटके कार्यों मे गति देगा और सफल बनायेगा।
इसके विपरीत शनि धन,यश,प्रतिष्ठा में हानि पहुंचायेगा तथा कार्यों में विध्न भी डालेगा।
विशेष बात यह है कि वक्री ग्रह कुण्डली मे चरित्र निर्माण की क्रिया मे सहायक होते हैं।
गुरु जिस भाव और जिस राशि में वक्री होते है, तो सम्बन्धित फलादेश मे काफी परिवर्तन आ जाता है।
जैसे कुम्भ राशि में गुरु वक्री होकर, अर्थात प्रथम भाव मे ही वक्री होकर संचरण करेगा तो व्यक्ति को शारीरिक निरोगता अनुभव होगी। स्वास्थ्य मे सुधार होगा।
मकर राशि वालों को द्वितीय भाव में शनि वक्री होगा अतः वक्री समय मे अपार धन दौलत देगा।
मिथुन राशि वालों को नवम भाव मे गुरु वक्री होकर संचरण करेगा को व्यक्ति के भाग्य के द्वार खोल देगा।
मीन राशि वालों के द्वादश भाव में वक्री गुरु होगा अतः व्यक्ति को जन्मभूमि की तरफ ले आयेगा।
अतः वक्री गुरु के समय अवधि में धैर्य और गंभीरता से कार्य को पकड़कर नई योजनाओं व नये कामों को गति देनी चाहिए।
गुरु की वक्री अवधि २१/६/२०२१ से १८/१०/२०२१ तक रहेगी। इसमें कुंभ,वृश्चिक, कर्क और मीन राशि वालों को राहत मिलेगी।
मिथुन और सिंह राशि वालों को लाभ मिलेगा, जबकि तुला राशि वालो को दाम्पत्य जीवन का सुख मिलेगा।
गुरु २१/६/२०२१ को कुंभ राशि में वक्री होगें और १४/९/२०२१ को वक्र गति से राशि परिवर्तन कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जिसके प्रभाव से शनि महाराज जिन राशियों को दण्डित कर रहे थे उन्हें सुकून मिलेगा।शनि का दण्ड थम जायेगा, व्यक्ति राहत की साँस ले सकेंगे।
अतः धनु,मकर,कुंभ,तुला, मिथुन राशि के जातक राहत महसूस करेंगे।
वक्री गुरु की स्थिति में कई बार व्यक्ति बिना माँगी सलाह या उपदेश देते हैं और उपहास का पात्र भी बनते हैं।
तो क्या करें- वक्री गुरु दशाकाल मे बड़ों का आदर ,सम्मान करें।गुरु संबंधित वस्तुओं का यथा केसर,हल्दी, पीले कपड़ें, फूल,सोना, पीतल आदि धातुओं का दान कर सकते हैं।
जहां शनि लगभग १४१ दिन तक अपने वक्र काल मे लोगों को किये कर्मो का दण्ड देगा, वहीं गुरु अपने वक्र काल मे १२०दिन शनि के कठोर दण्ड से बचायेगा।
अतः मारने वाला है भगवान, बचाने वाला है भगवान।
बाल का बाका हो उसका, जिसका रक्षक कृपानिधान।।
इसके पूर्व भी हमनें बताया है कि लगभग २१ या३०दिन ही हमें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
ईश्वर के नियम निश्चित है और व्यवस्थित हैं यही नियति है जिसका दण्डा सभी को ठीक चलने के लिए मजबूर करता है, जो नियति की अवहेलना करते हैं उन्हें काल निगल लेता है। वरना प्रकृति की गोद मे निश्चिंत और निर्द्वन्द होकर खेलों।