
वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी कथा
” वरुथिनी” एकादशी मंगलवार २६/०४/२०२२
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अब वैशाख कृष्ण एकादशी की कथा- युधिष्ठिर जी कहते है कि, हे वासुदेव! आपको नमस्कार है। वैशाखकृष्ण की एकादशी का क्या नाम है और उसकी क्या महिमा है? इसको आप कृपाकर वर्णन कीजिये। श्रीकृष्ण जी महाराज बोले कि, हे राजन ! इस लोक और परलोक मे सौभाग्य देनेवाली वैशाखकृष्ण मे ‘ वरुथिनी ‘ नाम की एकादशी होती है। वरुथिनी के व्रत प्रभाव से सदा सौख्य पापहानि और सौभाग्य सुख की प्राप्ति होती है। जो दुर्भगा स्त्री इस व्रत को करती है वह सौभाग्य को प्राप्त होती है यह एकादशी सब लोगों को भुक्ति मुक्ति प्रदान करती है। मनुष्यों का सब पाप हरण करती है।और उनके गर्भवास का दुःख दूर करती है, यानी वह फिर गर्भ मे नहीं आते। इस वरुथिनी के प्रभाव से मान्धाता स्वर्ग गये थे। और भी धुन्धुमार प्रभृति राजागण स्वर्ग मे निवास करते हैं। वे सब इसी वरूथिनी के प्रभाव से करते हैं, इसी से भगवान शंकर ब्रह्म कपाल से मुक्त हुए। १०,००० वर्ष तक जो मनुष्य तप करता है उससे मिलने वाले फल के समान इसके व्रत का फल होता है। कुरुक्षेत्र मे सूर्य ग्रहण के अन्दर सुवर्ण दान देने से जो फल मिलता है वही फल इसके व्रत से मिलता है।जो श्रद्धावान मनुष्य इस वरुथिनी के व्रत को करता है वह इस लोक में और परलोक मे अपनी इच्छाओं को पूर्ण करता है। यह पवित्र और पाविनी एवं महापापों को नाश करने वाली है। हे नृपसत्तम! करनेवालों को भुक्ति और मुक्ति का प्रदान करती है। घोड़े के दान से हाथी का दान अच्छा है, हाथी के दान से भूमि का दान अच्छा है और उससे उत्तम तिल का दान है। उससे अधिक सुवर्ण का दान और उससे भी उत्तम अन्न का दान होता है। अन्नदान से उत्तम दान न अभी तक हुआ है और न आगे होगा। पितरों की और देवताओं की तृप्ति अन्न से होता ती है और उसी के समान पण्डित लोगों ने कन्या दान भी कहा है। उसी के समान गोदान को भी भगवान ने उत्तम कहा है। इध सब कहे हुए दानों से भी अधिक उत्तम विद्या दान है। उसी विद्यादान के समान फल को वरुथिनी का कर्ता प्राप्त करता है। ,जो विधिपूर्वक व्रत करता है, जो मूर्ख लोग कन्या के धन से अपना जीवन निर्वाह करते हैं। वे प्रलय पर्यन्त नरक मे पड़े रहते हैं। इसलिए किसी भी तरह से कन्या के धन को ग्रहण न करें।
जो आदमी लोभ से कन्या को बेचकर धन ग्रहण करता है, हे राजन्! वह निश्चित ही बिलाव होता है। जो मनुष्य कन्या को अपनी शक्ति के अनुसार अलंकृत करके दान देता है उसके पुण्यफल की गणना चित्रगुप्तजी भी नहीं जानते। लेकिन वहीं फल इस वरुथिनी एकादशी व्रत करने से प्राप्त हो जाता है। दशमी के दिन वैशाख व्रत को करनेवाला मनुष्य कांसी,मांस,मसूर,चणा,कोदू,शाक,शहद,दूसरे का भोजन और मैथुन इन दश बातें का त्याग करें। तथा जूआ खेलना, सोना, पान खाना, दन्तुन करना, दूसरे की निंदा बुराई और पतित लोगों से बातचीत, क्रोध,झूठ वचनों को एकादशी के दिन छोड़ दे।हजामत,तेल की मालिश,दूसरे का अन्न इन सब चीजों का उस दिन की तरह द्वादशी के दिन भी त्याग करें । इस प्रकार हे राजन्! जिध लोगों ने वरुथिनी की है उनका सब पाप नष्ट होकर अन्त मे अक्षयगति प्राप्त हुई है। रात मे जागरण कर जिन्होंने भगवान की पूजा की है वे सब पापों को धोकर परमगति को प्राप्त हो गये हैं।
इसलिये सब प्रकार से पाप से डरनेवाले और यमराज से डरनेवाले मनुष्य हे राजन्! सब प्रयत्न कर वरुथिनी एकादशी का व्रत करें। उसके पढ़ने और सुनने से हे राजन! सहस्र गोदान के समान पुण्य होता है और सब पापों से मुक्त होकर अंत मे विष्णु लोक के आनंद को उसी मे प्रतिष्ठित हो भोगता है।
यह श्री भविष्योत्तर पुराण की कही हुई वैशाखकृष्ण एकादशी अर्थात वरुथिनी एकादशी के व्रत का माहात्मय पूरा हुआ।।