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वास्तु शास्त्र और वैज्ञानिक दृष्टिकोण :-
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उदय होते सूर्य के दर्शन, अस्तांचल को गमन की अपेक्षा अति मनोहर व मन भावन होते हैं। प्रातःकाल की रश्मियां सांयकाल की रश्मियों जैसी विचलित नहीं होती, यही कारण है कि भवनों के द्वार उत्तरमुखी अथवा पूर्व मुखी रखे जाते हैं।
22 दिसम्बर को जब सूर्य उत्तरायण गमन करते हैं तो शीतलता बरसाते हैं,29 जून को सूर्य दक्षिणायन होते हैं तो उष्णता लिए हुए होते हैं। सूर्य की गतियों के कारण ऋतु परिवर्तन होते हैं।किन्तु बार बार भवन परिवर्तन करना तो संभव नहीं है। अतः निर्माण के समय पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए भवन निर्माण करें ताकि परिवार के हर सदस्य को सुखद अनुभति ,स्वास्थ्य, आरोग्य, सुख-समृद्धि, रोग रहित तन व शोक रहित मन प्राप्त हो। यही वास्तुशास्त्र का मूल आधार है।
किन्तु जब घर मे व्यक्ति का मन उद्विग्न-अतृप्त होता है, सुख-समृद्धि नही मिलती, परिवार का कोई न कोई सदस्य रोगग्रस्त रहता है, बने हुए काम बिगडऩे लगते हैं, तो निश्चित होता है कि या तो उस मनुष्य को अशुभ ग्रहों की दशा चल रही है, अथवा शनि की साढेसाती का प्रकोप है, अथवा भूत-प्रेत कोई बाधा है। जबकि हम सोचें तो मनुष्य के रोग का कारण दूषित हवा,खान-पान,रोशनी का अभाव, दूषित वातावरण भी कारण है। यही वास्तु दोष भी है। अतः अनेक कारण हो सकते हैं किसी एक बात को दोष नहीं देना चाहिए। जैसे दक्षिण मुखी सभी के लिए अशुभ नहीं होते, इसी तरह मूल नक्षत्रों मे जन्मे सभी बालकों की मृत्यु नहीं होती।
ठीक इसी तरह सभी कर्क लग्न मे जन्में बालक राजनेता नहीं बनते हैं। शनि की साढ़ेसाती की प्रभाव भी सब को एक जैसा नहीं।
किसी भी घटना के कई कारण होते हैं। परन्तु स्थायी रुप से निवास हेतु घर अगर दिशाओं के अनुकूल हो तो वास्तु संबंधी दोष के विपरीत प्रभाव टाले जा सकते हैं।
1. रसोई घर आग्नेय कोण में ही बनाना चाहिए, यदि संभव न हो तो पश्चिम मे बनाना चाहिए तथा गृहणी का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। भोजनालय पूर्व या पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए,यदि वायव्य कोण में भण्डार के लिए उपयुक्त स्थान है।
2.पूजा स्थल ईशान कोण, शौचालय नैऋत्य कोण एवं दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व उत्तर दिशा के मध्य मे बनाना चाहिए, यहीं स्नानघर भी होना चाहिये।
3. दक्षिण पश्चिम व वायव्य कोण के मध्य एवं नैऋत्य व पश्चिम दिशा के मध्य का स्थान शयनकक्ष के लिए ठीक है। नैऋत्य और पश्चिम दिशा के मध्य अध्ययन कक्ष बनाना चाहिए।
4. महमानों के लिए स्वागत कक्ष वायव्य कोण या ईशान कोण एवं पूर्व दिशा के मध्य उपयुक्त होता है।
5. भूमिगत जल का स्थान ईशान कोण है। उत्तर पश्चिम व पूर्व दिशा में भी भूमिगत टंकी होना उपयुक्त है।
अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझिये।
सूर्य रश्मियों मे रोगों को नष्ट करने की शक्ति निहित है अतः पूर्व और उत्तर दिशा नीची और खुली रखें ,अधिक खिडकियों, दरवाजों का प्रावधान करें। क्योंकि अल्ट्रावायलेट किरणों से हमें विटामिन ए, डी और एफ मिलता है।
उत्तरी क्षेत्र से पृथ्वी की चुम्बकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव पड़ता है। सूर्य ताप से जल शुद्ध होता है। इसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैक्ट्रम कहते हैं।
उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठने से चुम्बकीय ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे मानव मष्तिष्क की कोशिकाओं मे सक्रियता बढती है। शुद्ध आक्सीजन भी मिलती है जिससे हमारी स्मरण शक्ति बढती है।
इसी तरह वास्तु के सभी प्रावधान वैज्ञानिक कसौटी पर आधारित हैं।