September 26, 2020

Why Ekadashi Vrat is very beneficial

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||| तिथियों में श्रेष्ठ एकादशी |||
★★★★★★★★★★★★★★★★☆★★★
शास्त्रोक्त नियम को ही व्रत कहते हैं, वहीं तप माना गया है। इंद्री संयम और मनोनिग्रह आदि विशेष नियम भी व्रत के ही अंग हैं।
व्रत करने वाले को शारीरिक संताप सहन करना पड़ता है, इसलिए इसे तप का नाम भी दिया है,और व्रत मे इन्द्रियों का संयम करना नियम है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि जप,तप,हवन,व्रत आदि से देवता प्रसन्न होतेहैं और जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं।
पुराणों में अनेक प्रकार के व्रतों का उल्लेख मिलता है।नक्षत्र,मास,अयन,तिथि संबंधी व्रत आदि अलग अलग कार्यो के लिए किए जाते हैं।
तिथियों में एकादशी का विशेष महत्व है, दोनों ही पक्षों मे एकादशी तिथि आती है।कुल 24 एकादशी तिथियां एक संवत्सर मे होती हैं, किसी वर्ष मे अधिक मास होने से इनकी संख्या 24 से बढ़कर 26 हो जाती है।
इनमें से भी कुछ विशेष एकादशीयाँ अति महत्वपूर्ण हैं।जिनमें यदि व्यक्ति व्रत करें तो अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है, तथा इच्छित कार्य भी पूर्ण होते हैं।
(१) मार्गशीर्ष-कृष्णपक्ष-उन्मीलनी- ऋतुफल-पापनाशक
शुक्लपक्ष- मोक्षदा- तुलसीमंजरी-पितर उद्वार
(२) पौष-कृष्णपक्ष- सफला-नारियल-नष्ट अधिकार पुनः
शुक्लपक्ष- पुत्रदा- अश्वत्थ,अशोक-पुत्र प्राप्ति।
(३) माघ-कृष्णपक्ष- षट्तिला-नारियल- दरिद्र नाशनी।
शुक्लपक्ष- जया- बकुल- दुर्गति नाशनी।
(४) फाल्गुन- कृष्णपक्ष- विजया-पुंगीफल- शत्रु विजय।
शुक्लपक्ष- जया- कदलीफल- विष्णु लोक।
(५) चैत्र- कृष्णपक्ष- पापमोचिनी- तुलसी- पाप विनाश।
शुक्लपक्ष- कामदा- अशोक- मनोरथ सिद्धि।
(६) वैशाख- कृष्णपक्ष- वरुथिनी- तुलसी-सौभाग्य प्राप्त
शुक्लपक्ष- मोहिनी- नारियल- मोह निवृत्ति।
(७) ज्येष्ठ-कृष्ण पक्ष-अपरा- ऋतुफल- पुत्र प्राप्ति।
शुक्ल पक्ष-निर्जला-प्रियदर्शन पुष्प-पापनाशिनी।
(८)आषाढ़-कृष्णपक्ष-योगिनी-तुलसीदल-रोगनिवृत्ति।
शुक्लपक्ष-देवशायनी-नारियल-परमगति।
(९)श्रावन-कृष्ण पक्ष-कामिका-तुलसीदल-उद्धार।
शुक्लपक्ष- पुत्रदा-कदलीफल-पुत्रसुख,स्वर्ग।
(१तदुभाद्रपद-कृष्णपक्ष-अजा-पाटल,तुलसी-दुःखनिवृत्ति
शुक्लपक्ष- पद्मा- नारियल-सुख प्राप्ति।
(११)आश्विन -कृष्णपक्ष-इन्दिरा-नारियल-विष्णुलोक।
शुक्लपक्ष-पाशांकुशा-पाटल-पत्नी, पुत्र,धन
(१२) कार्तिक-कृष्णपक्ष-रमा-तुलसीपत्र-मुक्ति प्राप्ति।
शुक्लपक्ष- प्रबोधिनी-ऋतुफल-वंशोउद्धार।
(१३)पुरुषोत्तममास-कृष्ण-कमला-पूंगीफल-लक्ष्मी प्राप्ति
शुक्लपक्ष- कामदा-तुलसीदल-मुक्ति प्राप्ति
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व्यक्ति को चाहिए कि दशमी के दिन ही अगले दिन एकादशी का व्रत का संकल्प करें और जुआ,अमोद-प्रमोद परक क्रीड़ाओं, निंद्रा, ताम्बूल, मंजन,परनिंदा, पिशुनता,चौर्य,हिंसा, असत्य भाषण तथा रति आदि दस व्यसनों का परित्याग कर दें।इस प्रकार शुद्ध आचरण वाला व्रत का अनुष्ठान करें।
एकादशी के दिन व्यक्ति अन्न पानादि का परित्याग करके सारा दिन भगवान का भजन करें और रात्रि को भगवान का ध्यान करें।एकादशी रात्रि जागरण का बहुत महत्व है।
” कुरुते जागरे रात्रों सप्तद्वीपाधिपो भवेत् “
पहले ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए तदुपरान्त श्रीहरि का स्मरण करते हुए भोजन करना चाहिए।
उपरोक्त मास का नाम पक्ष का नाम, पूजा में विशेष फल व पुष्प और व्रत का फल लिखा गया है।

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