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आपका प्रश्न- पति कमा रहा है और पत्नी भी कमा रही है तो घर का काम पत्नी ही क्यों करे ? एक स्त्री का प्रश्न
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उत्तर – प्रश्न के अंदर जो एक बात समझ मे आ रही है कि पति का अनुगमन तभी करना चाहिए जब पत्नी जीविका के लिए पति पर आश्रित हों अन्यथा नहीं। और यदि पत्नी भी कमा रही हो तो पति को भी घर के काम करना चाहिए जरुरी नहीं कि पत्नी ही करें। इसका मतलब यह निकलता है कि पत्नी जब नहीं कमा रही तब वो प्रश्न नहीं है लेकिन यदि वो भी कमा रही है तो फिर एक स्त्री का प्रश्न खड़ा है, अर्थात सारा आधार अर्थ के कारण है।
फिर ये तो अर्थ शास्त्र हुआ, ये धर्म शास्त्र नहीं हुआ।
वेद शास्त्र सभी कहते हैं कि पति पत्नी मे आर्थिक नहीं धार्मिक सम्बंध होना चाहिए। बच्चों को सुसंस्कृत करने की जिम्मेदारी मां बाप की होती है, लेकिन जब दोनों कमाई मे व्यस्त रहेंगे तो?
यहां यह समझना जरूरी है कि यदि बच्चे नौकरों और दाई के सहारे पलेंगे तो वे चिढ़चिढ़े होगें तथा माता-पिता के भक्त नहीं होंगे तथा ऐसी स्थिति में वे अनाथ जैसे हो जायेंगे।
इसके बाद बेटे-बहू भी नौकरी करेंगे तो बुढापे मे माता पिता की सेवा कौन करेगा अर्थात कोई नहीं घर नरक बन जायेगा और रोने के आलावा क्या रहेगा?
ये तो पशु-पक्षी जैसा सम्बंध होगा,
पशु-पक्षी का सम्बंध कितने महिने का होता है, कुछ ही महीने का ,इसके बाद ये पशू-पक्षी न पति पत्नी, न बेटा-बेटी अर्थात कुछ नहीं कोई सम्बंध नहीं!फिर वे आपका श्राद्ध कर्म भी क्यों करेंगे?
क्या आप ऐसा जीवन चाहते हैं ?
श्रौत सिद्धांत के अनुसार न्यून और विराट से ही सृष्टि होती है अर्थात स्त्री पुरूष समन्वय से ही सृष्टि होती है।
स्त्री सौम्या होने से भोग्य है, पुरुष आग्नेय होने से भोक्ता है अतएव वह स्त्री से प्रबल है और स्त्री पुरुष अपेक्षया न्यून है। यही विराट और न्यून का सम्बंध है।
विराट मे त्रयी ब्रह्म आग्नेय होने से भोक्ता है।
सुब्रह्म सौम्य होने से भोग्य है। सूर्य और चन्द्र जैसे।
अतः पति पत्नी का सम्बंध धर्म मूलक होना चाहिये, अतः धर्म में पति पत्नी के सम्बंधों की अवहेलना नहीं होनी चाहिए। जो मनुष्य प्रेम व सेवा में परहेज करता है अथवा सांसारिक स्नेह और आध्यात्मिकता के परस्पर असम्बद्ध विभागों मे अपने जीवन को विभक्त कर देता/देती है वह पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकता, अतः धार्मिक अनुभूति मे सम्बंधों से मुक्त नहीं होना चाहिए, अपितु उसकी बुराइयों से बचना चाहिऐ।
पत्नी का पति के प्रति महान समर्पण देखिये
मेरी आत्मा तुम्हीं हो।
मेरी बुद्धि तुम्हारी संगिनी है।
मेरे प्राण तुम्हारे सेवक है।
मेरा यह शरीर तुम्हारा घर है।
सांसारिक विषय भोग की समृद्धि तुम्हारी पूजा है।
मेरा चलना फिरना तुम्हारी प्रदक्षिणा है।
मेरा बोलना तुम्हारी स्तुति है।
मेरा हर कर्म मेरी उपासना है।
उपरोक्त भावना महान नारियों मे थी , जैसे सुलभा,चूड़ाला,गार्गी,महासती सीता, सती सावित्री, सती दमयंती, सती शाण्डिली के भाव थे।
और आप के भाव , जब आप भी कमाती है तो क्या हैं?
आपका प्रश्न था कि पत्नी ही घर के काम क्यों करें?
आशा है कुछ रोशनी जरूर दिखाई होगी ।